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१०. पुष्पिका (पुप्फियाओ) ११. पुष्पचूलिका (पुप्फचूलाओ) १२. वृष्णिदशा (वण्हिदसाओ)
१. उत्तराध्ययन (उत्तरज्झयणाइं) २. दशवैकालिक (दसवेयालियं)
३.
. नन्दीसूत्र (नंदिसुत्तं)
४. अनुयोगद्वार (अणुओगद्दाराई)
१. दशाश्रुतस्कन्ध (आयारदसाओ)
२. बृहत्कल्प (कप्पं)
३. व्यवहार (ववहारं)
४. निशीथ सूत्र (निसीह)
जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
4 मूलसूत्र
4 छेदसूत्र
नोट- कल्पसूत्र और बृहत्कल्प भिन्न हैं । कल्पसूत्र दशाश्रुतस्कन्ध का ही एक भाग है, जो विकसित हुआ ।
बत्तीसवां सूत्र - आवश्यक सूत्र ( आवस्सयं)
१. उत्तराध्ययन
२. दशवैकालिक
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में मान्य ४५ आगम
इस सम्प्रदाय में सम्मिलित खरतरगच्छ, तपोगच्छ आदि सभी उपसम्प्रदायें ४५ आगम मान्य करती हैं। उन ४५ आगमों में ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूलसूत्र, ६ छेदसूत्र, १० प्रकीर्णक एवं २ चूलिका सूत्रों की गणना की जाती है।
11 अंग
स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय द्वारा मान्य सभी अंग सूत्र | 12 उपांग स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय द्वारा मान्य सभी उपांग सूत्र ।
4 मूलसूत्र
मूलसूत्रों की संख्या एवं नामों के संबंध में श्वेताम्बर सम्प्रदाय में एकरूपता नहीं है। प्राय: निम्नांकित ४ मूलसूत्र माने जाते हैं
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३. आवश्यक
४. पिण्डनिर्युक्ति
नोट- कुछ आचार्यों ने पिण्डनिर्युक्ति के साथ ओघनियुक्ति को भी मूलसूत्र में माना है एवं वे 'पिण्डनिर्युक्ति — ओघनियुक्ति' नाम देते हैं ।
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