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शास्त्रियों के अन्वेषण का विषय है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कृत्तिका और अनुराधा एक दूसरे के सामने रहनेवाले नक्षत्र हैं, क्योंकि मण्डलाकृति में २८ नक्षत्रों में कृत्तिका के सामने १४वें नक्षत्र के रूप में अनुराधा ही आता है।
इसी प्रकरण में ज्ञानवृद्धि करने वाले दस नक्षत्र बताए गए हैंमृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, तीनों पूर्वा, मूल, आश्लेषा, हस्त और चित्रा। मुहूर्त चिन्तामणि मे भी विद्यारम्भ के लिये इन्हीं नक्षत्रों को श्रेष्ठ माना गया है। आयुर्वेद- अष्टम स्थान में कुमार-भृत्य (बाल चिकित्सा) काय-चिकित्सा (शारीरिक शास्त्र) शालाक्य (आँख, नाक, कान, मस्तिष्क और गले की विशेष चिकित्सा, आज भी एलोपैथी में इन अंगों का विशेष अध्ययन भिन्न रूप से करवाया जाता है), शल्य-चिकित्सा (ऑप्रेशन) जंगोली (सांप, बिच्छू आदि के विष की चिकित्सा एवं इनके विषों के नानाविध प्रयोग), भूत विद्या (भूत-प्रेत आदि के शमन का शास्त्र। अब पश्चिम में भी इसका विकास 'पराविद्या' के अन्तर्गत हो रहा है), क्षारतन्त्र (यवक्षार, चणकक्षार, आदि द्वारा की जाने वाली चिकित्सा, आज की बायोकैमिक प्रणाली १२ क्षारों पर ही निर्भर है), रसायन (धातुओं, रत्नों एवं पारद गन्धक आदि द्रव्यों द्वारा तैयार की गई औषधियों द्वारा चिकित्सा जिसे विशेषत: बल-वीर्य की वृद्धि के लिये प्रयुक्त किया जाता है) इन आठ रूपों में उस समय प्रचलित आयुर्वेद की चिकित्सा-पद्धतियों का यहाँ उल्लेख किया गया है।
साथ ही नवम स्थान में रोगोत्पत्ति के नौ कारण बताते हुए लिखा हैअति आहार, अरुचिकर भोजन, अतिनिद्रा, अति जागरण, मलवेग का रोकना, मूत्र वेग का रोकना, अति चलना, प्रतिकूल आहार और कामवेग का रोकना या अति विषय-सेवन आदि रोगोत्पत्ति के कारण हैं। ये कारण लोकप्रसिद्ध एवं सर्वमान्य हैं।
इसी प्रकार नौ प्रकार का आयु-परिमाण, दस प्रकार का बल, दस प्रकार की तृणवनस्पतियाँ, तीन प्रकार की परिचारणा, तीन प्रकार के मैथुन सेवियों के भेद, माता से मिलने वाले तीन अंग, पिता से मिलने वाले तीन अंग, मनुष्य और तिर्यचों की शुक्र और शोणित से उत्पत्ति, तीन-तीन के चार समूहों में स्त्रीयोनि के भेद, बिना पुरुष संसर्ग के गर्भ धारण के पाँच कारण, संसर्ग होने पर भी गर्भाधान न होने के पाँच कारण आदि विषय आयुर्वेद से ही सम्बन्धित हैं। मनोविज्ञान- दसवें स्थान में वर्णित क्रोधोत्पत्ति के दस कारण, अभिमान होने के दस स्थान, दस प्रकार की सुखानुभूति, दस प्रकार के संक्लेश, दुःखानुभूति के कारण आदि विषयों का विवेचन मनोविज्ञान का ही विषय है। भौतिक विज्ञान- शब्द भी पुद्गलात्मक है अर्थात् शब्द के भी परमाणु होते हैं, आज तक यह सिद्धान्त शब्द शास्त्रियों को स्वीकार्य नहीं था, परन्तु अब
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