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स्थानांग सूत्र का प्रतिपाद्य
1511 एवं हिमाच्छादन से रहित झीलें महाहदों के रूप में पहचानी जा सकती हैं।
क्षीरोदा (जिसका जल दूध जैसा दिखाई दे), शीतस्रोता और अन्तर्वाहिनी (बर्फ के या चट्टानों के नीचे ही नीचे बहने वाली अनेकश: नदियाँ), मेरु (संभवत: गौरीशंकर पर्वत) के आस-पास देखी जा सकती हैं।
इसी प्रकार इस विषय के अन्तर्गत भूकम्प के कारणों आदि की विवेचना एवं घनवात. घनोदधि आदि पर अवलम्बित पृथ्वी का वर्णन भूगोलीय अन्वेषणों की मूलाभित्ति प्रस्तुत करते हैं। खगोलीय वर्णन- इस विषय के मूल तत्त्वों पर भी स्थानांग सूत्र के द्वारा थोड़ा बहुत प्रकाश अवश्य पड़ता है। ज्योतिष-शास्त्र में अट्ठाईस नक्षत्र बताए गए हैं, उनके अधिष्ठाता देवों के नामों का यहाँ उल्लेख है। इनके अतिरिक्त ८८ ग्रहों का उल्लेख भी द्वितीय स्थान के तृतीय उद्देशक में प्राप्त होता है। आधुनिक खगोलशास्त्रियों ने नौ ग्रहों के अतिरिक्त कुछ अन्य हर्षल आदि ग्रहों का भी पता लगाया है, हो सकता है कि वे स्थानांग में वर्णित ८८ ग्रहों के अन्तर्गत ही हों, परन्तु उनके नाम स्थानांग ही बताएगा, चाहे नए नाम रख लिये जाएँ।
स्थान-स्थान पर नक्षत्र और चन्द्र योग पर भी प्रकाश डाला गया है। साथ ही किस-किस प्रधान नक्षत्र के साथ कितने अन्य तारों का संबंध है इस विषय की भी विवेचना की गई है।
खगोल-शास्त्र के अन्तर्गत स्थानांग के तीसरे स्थान में अल्पवृष्टि और अतिवृष्टि के भी तीन-तीन कारण बताए गए हैं। उनमें से जलीय पुद्गलों (परमाणुओं) के अभाव या अधिकता वाला कारण तो विज्ञान सम्मत ही है। देव, भूत, नाग यक्ष आदि की सम्यक् पूजा का होना या न होना रूप जो कारण सुवृष्टि या अनावृष्टि के लिये प्रदर्शित किया गया है, वह तत्कालीन समाज की देव-पूजा परायणता पर प्रकाश डालता है और हो सकता है उस पर वैदिक देववाद का भी प्रभाव हो, क्योंकि यज्ञों द्वारा संतुष्ट देव ही वहाँ सुवृष्टि के कारण माने गए हैं। वायु द्वारा जलीय पुद्गलों को अन्यत्र खींच ले जाना अथवा खींचकर उस स्थान पर लाना रूप कारण अल्पवृष्टि एवं सुवृष्टि के लिये उचित ही हैं।
नवम स्थान में शुक्रग्रह की हय-वीथी, गजवीथी, नागवीथी, वृषभ वीथी, गो-वीथी, उरगवीथी, अजवीथी, मित्रवीथी और वैश्वानर-वीथी ये नौ वीथियाँ बताई गई हैं। ये नौ वीथियां क्या हैं और इनका क्या प्रभाव है यह सब अध्ययन का विषय है।
दशम स्थान में कहा गया है कि कत्तिका और अनुराधा ये दो नक्षत्र चन्द्र के सभी बाह्य मण्डलों में से दसवें मण्डल में परिभ्रमण करते हैं। यह चन्द्र से कृत्तिका एवं अनुराधा नक्षत्र की माण्डलिक दूरी का वर्णन ज्योतिष
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