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जिनवाणी - जैनागम साहित्य विशेषाङ
आगम के परिचय हेतु जो प्रकाशन हुआ है वह पुस्तक के रूप में हुआ है, जिसे हर एक क्रय करने का प्रयत्न नहीं करता । यह एक मासिक पत्रिका का विशेषाङ्क हैं जो पाठकों को सहज सुलभ हो सकेगा। एक साथ आठ नौ हजार सदस्यों के पास पहुंचने से कम से कम इसके दस गुना लोग इससे लाभान्वित होंगे। दूसरी बात यह है कि यह किसी एक लेखक की कृति नहीं है । इसमें विभिन्न प्रतिष्ठित लेखकों के लेख हैं जो आगम की विषयवस्तु एवं वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालते हैं। किसी पत्रिका के विशेषाङ्क के रूप में प्रकाशन का यह प्रथम प्रयास है। एक ही अंक में सभी आगमों से परिचित कराना एक कठिन कार्य अवश्य था, किन्तु लेखकों के सहयोग से यह सम्भव हो सका हैं। बिना किसी खण्डन- मण्डन के सीधे सरलरूप में आगमों के हार्द से पाठकों को अवगत कराना ही इस विशेषाङ्क का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य रहा है।
यह उल्लेख करते हुए हर्ष का अनुभव होता है कि लेखकों ने तत्परतापूर्वक अपना सहयोग दिया है।
इस विशेषाङ्क की योजना कुछ अधिक थी । इसमें आगम- साहित्य के परिचय के साथ आगम- साहित्य में वीतरागता, विज्ञान, अहिंसा, पर्यावरण संरक्षण, संगीतकला, शिक्षा, आगम-साहित्य की काव्यशास्त्रीय समीक्षा आदि अनेक लेख भी सम्मिलित किए जाने थे, किन्तु कलेवर की अधिकता को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत विशेषाङ्क में उपर्युक्त लेख हमें प्राप्त हो जाने पर भी सम्मिलित नहीं किये जा सके। हम इन लेखों का पृथक रूप से जिनवाणी का एक अंक निकालने का विचार रखते हैं। अतः पाठकों को आगम-साहित्य विषयक पाठ्यसामग्री एक बार पुनः प्राप्त हो सकेगी।
मैं उन सब विद्वत् सन्तों एवं माननीय लेखकों का हार्दिक आभार ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने इस विशेषाङ्क के लिए अपने लेख प्रेषित किए। उनके सहयोग के बिना इस विशेषाङ्क का प्रकाशन संभव नहीं था । सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के अध्यक्ष श्री चेतनप्रकाश जी डूंगरवाल के प्रोत्साहन एवं मन्त्री श्री प्रकाशचन्द जी डागा के सर्वविध सहयोग के लिए मैं उनका भी हार्दिक कृतज्ञ हूँ ।
जिनवाणी के पाठक - सदस्यों का विशेष रूप से आभारी हूँ, जिन्होंने तीन माह तक धैर्य रखकर इस विशेषाङ्क के प्रकाशन में मूक सहयोग प्रदान किया। वे विशेषाङ्क को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत करायेंगे, ऐसी आशा एवं प्रार्थना है।
- डॉ. धर्मचन्द जैन
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