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________________ 10 जिनवाणी - जैनागम साहित्य विशेषाह विद्वानों ने भी इस दिशा में अग्रणी रूप से कार्य कर जैन साहित्य की महत्ता को भारतीयों और वैदेशिकों के मध्य प्रतिष्ठित किया है। आचारांग सूत्र का प्रथम संस्करण हर्मन जैकोबी द्वारा बर्लिन से प्रकाशित किया गया था। भारत में आचार्य आत्माराम जी म.सा., आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा., पूज्य अमोलकऋषि जी, मुनि पुण्यविजय जी, मुनि जम्बूविजय जी, सागरानन्दसूरि जी, आचार्य तुलसी जी, आचार्य महाप्रज्ञ जी, उपाध्याय श्री कन्हैयालाल जी 'कमल' आदि ने आगमों के संपादन, अनुवाद, विवेचन या टीका लेखन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान किया है। विद्वत् समाज में प. दलसुख मालवणिया, पं. बेचरदास दोशी, पं. शोभाचन्द भारिल्ल आदि के नाम आदरपूर्वक लिए... जाते हैं । अभी तक भाष्य, चूर्णि और संस्कृत टीकाओं के अनुवाद सामने नहीं आए हैं। प्रकीर्णकों का अनुवाद आगम-अहिंसा एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर से हो रहा है। नियुक्तियों पर लाडनूँ और वाराणसी में कार्य चल रहा है I भगवान महावीर के २६००वें जन्मकल्याणक के अवसर पर उनकी वाणी के अंश रूप में मान्य आगमों के अध्ययन को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से 'जिनवाणी' मासिक पत्रिका का यह १५वाँ विशेषाङ्क 'जैनागम - साहित्य' विशेषा‌ङ्क के रूप में समर्पित है। इस विशेषांक में स्थानकवासी एवं तेरापन्थ सम्प्रदाय द्वारा मान्य सभी ३२ आगमों के अतिरिक्त प्रकीर्णकों एवं आगमों के व्याख्या- साहित्य पर भी निबन्ध संगृहीत हैं । दिगम्बर परम्परा में मान्य प्रमुख आगमतुल्य ग्रन्थों का परिचय भी इसमें समाविष्ट है। इस प्रकार यह ग्रन्थ जैनागम साहित्य का लगभग सम्पूर्ण कलेवर समेट रहा है। जैनागम - साहित्य के परिचय हेतु पूर्व में भी कुछ प्रकाशन हुए हैं. उनमें एच. आर. कापडिया की पुस्तक - A History of Jaina Canoniocal Literature, श्री विजयमुनि शास्त्री की " आगम और व्याख्या साहित्य', आचार्य देवेन्द्रमुनिजी की 'जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा', आचार्य जयन्तसेनसूरि जी द्वारा सम्पादित 'जैनागम : एक अनुशीलन' पुस्तकें प्रकाश में आई हैं। पार्श्वनाथ विद्यापीठ से प्रकाशित जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास के प्रथम दो भाग भी इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज के 'जैनधर्म का मौलिक इतिहास' एवं डॉ. जगदीशचन्द्र जैन के 'प्राकृत साहित्य का इतिहास' पुस्तकों में भी आगम-साहित्य का परिचय विद्यमान है। इसके अतिरिक्त अहमदाबाद में १९८६ में हुई संगोष्टी के शोध-पत्रों की पुस्तक 'जैन आगम साहित्य' डॉ. के. आर. चन्द्र के सम्पादकत्व में प्रकाशित हुई है। श्री मधुकर मुनि जी द्वारा संक्षेप में 'जैनागम : एक परिचय' नामक लघुपुस्तिका भी लिखी गई है। आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर से प्रकाशित आगमों की भूमिकाएँ भी आगमों का ज्ञान कराने में सहायक हैं। प्रस्तुत विशेषारक का सपना रहेश्य एवं वैशिष्ट्य है। अब तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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