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सिन्दूरप्रकर आचार्य सोमप्रभ ने अभिवन्दना के स्वरों में प्राणिमात्र के कष्टनिवारण हेतु लिखा है-'आपके चरणनखों की अत्यधिक आभा तुम्हारी अर्थात् प्राणिमात्र की रक्षा करे।' प्रश्न हो सकता है कि चरणनखों का ही आलम्बन क्यों? शरणागत में आने वाला सर्वप्रथम पैरों में ही लुठता है। इसलिए पैर ही शरणागत का आलम्बन बनता है। वैज्ञानिकदृष्टि से पैरों का विश्लेषण करें तो शरीर के कुछेक अवयव ऐसे हैं, जिनसे प्राण-ऊर्जा का निर्गमन बहुत अधिक होता है। उनमें मुख्यतया हाथ, पैर, वाणी और चक्षु हैं। जैन परम्परा में पाद-विहार की परम्परा है। भूमि के साथ पैरों का सीधा संपर्क होता है। पैरों की एड़ियां भूमि से विद्युत् ग्रहण कर सारे शरीर को पहुंचाती हैं। एक्यूप्रेशर के सिद्धान्त से भी पैरों के महत्त्व को समझा जा सकता है। इस शरीर में थाइरॉइड् ग्लैण्ड (Thyroid Gland), पिच्यूटरि ग्लैण्ड (Pituitary Gland) तथा पिनियल ग्लैण्ड् (Pineal Gland) आदि अनेक ग्लैण्ड् विद्यमान हैं। पर पैर में भी इन ग्लैण्डों के संवादी केन्द्र विद्यमान हैं। जिस आंख से देखा जाता है, कान से सुना जाता है उनके संवादी केन्द्र भी मनुष्य के पैर में हैं। जितने भी केन्द्र मस्तिष्क में विद्यमान हैं उन सबके संवादी केन्द्र पैरों के अंगूठे और अंगुलियों में पाए जाते हैं। शरीर का ऐसा एक भी अवयव नहीं है जिसका संवादी केन्द्र पैर में न हो। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि पैर तथा पैर का अंगूठा या अंगुलियां इतनी अधिक शक्तिशाली हैं कि वे पूरे शरीर का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं। एक्यूप्रेशर (Accupressure) से अस्वास्थ्य की समस्याओं का भी निराकरण होता है। नंगे पैर भूमि पर चलने से स्वतः ही पैर के पॉइन्टों पर दबाव पड़ता है। जिस पॉइन्ट का जिस रोग से संबंध होता है वह पॉइन्ट सम्यक् प्रकार से दबने पर उस रोग की चिकित्सा हो जाती है। पैरों का यह मूल्यांकन शारीरिक तथा स्वास्थ्यस्तर पर किया गया है। _ आचार्य सोमप्रभ ने पैरों का मूल्यांकन आध्यात्मिक दृष्टि से किया है। पैर आध्यात्मिक यात्रा के प्रतीक हैं, संयम यात्रा के प्रतीक हैं। कैसे चलें? जिससे पापकर्मों का बन्ध न हो। भगवान पार्श्व उस संयम यात्रा के प्रतीक हैं, वीतराग पुरुष हैं। उनकी चेतना भवबीज को उत्पन्न करने वाले रागद्वेष से मुक्त है। वे पूर्णतया विशुद्ध और पवित्रात्मा हैं। ऐसे पवित्रात्मा के चरणों की शरण लेना स्वयं के लिए सुरक्षा कवच का निर्माण करना है।
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