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________________ | परिशिष्ट : २ व्याकरण-विमर्श श्लो. १. पातु वः-यहां युष्मान् के स्थान पर 'पदादेकवाक्ये...' (अष्टा. २।११५६) सूत्र से वस् आदेश हुआ है। श्लो. ५. दुष्प्रापम्-दुःखेन प्राप्यते तद्...ऐसा विग्रह करने पर 'दुःस्वीषत्सु कृच्छ्राऽकृच्छ्रार्थेषु खल्' (अष्टा. ६/१/१७) इस सूत्र से खल् प्रत्यय। श्लो. १३. स्वहितैषिणा-स्वस्मै हित इति स्वहितः, तमिच्छतीत्येवंशीलः, ऐसा विग्रह करने पर 'अजाती ताच्छील्ये' (अष्टा. ५।२८५) सूत्र से ताच्छील्य अर्थ में धातु से णिन्, 'उपधायाः लघोः' (अष्टा. ४।२।४) से गुण होने पर-स्वहित एषिन्, इस अवस्था में 'एदेतोरेत्' (अष्टा. १२१९) से एकारसहित हित के अकार को ऐकारादेश-स्वहितैषिन्। प्रथमा विभक्ति का एक वचनस्वहितैषी, तेन स्वहितैषिणा, 'अवकुप्वनुस्वार....' (अष्टा, २।२१७०) सूत्र से नकार को णकार। श्लो. १५. निमज्जन्तम्-यह निपूर्वक 'टुमस्जोज् शुद्धौ' धातु से शतृप्रत्यय का रूप है। मस्ज-यहां 'स्तोः श्चुभिः श्चुः' (अष्टा. १३५) सूत्र से स् को श्, 'झबे जबा झसानाम्' (अष्टा. ११३।४३) सूत्र से श् को ज् होने पर मज्ज, फिर 'शतृशानौ वर्तमाने...' (अष्टा. ५।३।४) से शतृप्रत्यय तथा 'तुदादेरन्' (अष्टा ३।४।२८) सूत्र से अन् होने पर-मज्ज+अन्+शतृ, 'अदेतोरपदान्तेऽतः' (अष्टा. २।१।३१) से मज्ज के अकार का लोप, फिर 'उदृदितो नुम्' (अष्टा. १।४।५८) सूत्र से नुम् का आगम होने पर मज्जन, तं निपूर्वक निमज्जन्तम्। श्लो. १७. गुणपरिणद्धम् गुणैः-परिणद्धम् बद्धमित्यर्थः। परिणद्धम्-यहां परिपूर्वक ‘णहंन्च् बन्धने' धातु है। 'भ्वादेरादेो नः' (अष्टा. ४।३।१) से णह् धातु के ण को न्, 'क्तक्तवतु' (अष्टा. ५१२११०५) सूत्र से क्त प्रत्यय करने पर-नह+क्त, 'नहो घः' (अष्टा. २१११५) सूत्र से ह् को ध् न+त, 'झभात्तथोोऽधः' (अष्टा. २११११) सूत्र से क्त के त को ध करने पर तथा झबे जबा झसानाम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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