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सिन्दूरप्रकर
प्रशस्तिः अभजदजितदेवाचार्यपट्टोदयाद्रि
धुमणिविजयसिंहाचार्यपादारविन्दे। मधुकरसमतां यस्तेन सोमप्रभेण,
__ व्यरचि मुनिपनेत्रा सूक्तिमुक्तावलीयम् ।।१०१।। अन्वयःयः (सोमप्रभः) अजितदेवाचार्यपट्टोदयाद्रिद्युमणिविजयसिंहाचार्यपादारविन्दे मधुकरसमताम् अभजत्। तेन मुनिपनेत्रा सोमप्रभेण इयं सूक्तिमुक्तावली व्यरचि।
अर्थ
आचार्य अजितदेव के पट्टरूपी उदयाचल पर सूर्य के समान (तेजस्वी) आचार्य विजयसिंह सुशोभित हुए। उनके चरणकमल में भ्रमरतुल्य आचार्य सोमप्रभ हुए। उन सूरीश्वर सोमप्रभ ने इस सूक्तिमुक्तावली नामक ग्रन्थ (अपर नाम सिन्दूरप्रकर) की रचना की।
सूक्तिमुक्तावली अपरनामा सिन्दूरप्रकरश्चेति ग्रन्थः
संपन्नः।
१. मालिनीवृत्त ।
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