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________________ श्लोक ९२-९६ तृणतत्य जानकर उनमें होने वाली आसक्ति का परित्याग करता है वह अकलुषित और विरक्त मनुष्य मुक्ति को प्राप्त करता है। ___ जिनेन्द्रपूजा गुरुपर्युपास्तिः सत्त्वानुकम्पा शुभपात्रदानम् । गुणानुरागः श्रुतिरागमस्य नृजन्मवृक्षस्य फलान्यमूनि ।।९४।। अन्वयः-- जिनेन्द्रपूजा, गुरुपर्युपास्तिः, सत्त्वाऽनुकम्पा, शुभपात्रदानम् , गुणानुरागः, आगमस्य श्रुतिः, अमूनि नृजन्मवृक्षस्य फलानि (सन्ति)। अर्थ मनुष्यजन्मरूपी वृक्ष के ये फल हैं-जिनेन्द्रपूजा, गुरु की पर्युपासना, प्राणियों पर दया, सुपात्र-दान, गुणानुराग, आगम-श्रवण। सामान्योपदेशः त्रिसन्ध्यं देवार्चा विरचय चयं प्रापय यशः, श्रिय. पात्रे वापं जनय नयमार्ग नय मनः। स्मरक्रोधाद्यारीन् दलय कलय प्राणिषु दयां, जिनोक्तं सिद्धान्तं शृणु वृणु जवान्मुक्तिकमलाम् ।।९५।। अन्वयःत्रिसन्ध्यं देवा! विरचय, यश: चयं प्रापय, श्रियः पात्रे वापं जनय, मनः नयमार्ग नय, स्मरक्रोधाद्यारीन् दलय, प्राणिषु दयां कलय, जिनोक्तं सिद्धान्तं शृणु, (एतानि कृत्वा) जवात् मुक्तिकमलां वृणु। अर्थ हे भव्यजन! तुम तीनों सन्ध्याओं में वीतराग देव की अर्चा करो, यश का उपचय करो, लक्ष्मी का सुपात्र में वपन करो अर्थात् लक्ष्मी का सद्कार्यों में विसर्जन करो, मन को न्यायमार्ग पर ले जाओ, कामक्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो, प्राणियों पर दया करो, जिनभगवान द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त का श्रवण करो। (इन सबको करते हुए) तुम शीघ्र ही मुक्तिरूपी लक्ष्मी का वरण करो। कृत्वाऽर्हत्पदपूजनं यतिजनं नत्वा विदित्वाऽ।गम, हित्वा सङ्गमधर्मकर्मठधियां पात्रेषु दत्वा धनम् । गत्वा पद्धतिमुत्तमक्रमजुषां जित्वाऽन्तरारिव्रजं, स्मृत्वा पञ्चनमस्क्रियां कुरु करक्रोडस्थमिष्टं सुखम् ।।९६।। १. उपजातिवृत्त। २. शिखरिणीवृत्त। ३. शार्दूलविक्रीडितवृत्त। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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