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सिन्दूरप्रकर 'हिमति महिमाम्भोजे चण्डानिलत्युदयाम्बुदे,
द्विरदति दयारामे क्षेमक्षमाभृति वज्रति। समिधति कुमत्यग्नौ कन्दत्यनीतिलतासु यः,
किमभिलषता श्रेयः श्रेयः स निर्गुणसङ्गमः ।।६८।। अन्वयःयो महिमाम्भोजे हिमति, उदयाम्बुदे चण्डाऽनिलति, दयारामे द्विरदति, क्षेमक्षमाभृति वज्रति, कुमत्यग्नौ समिधति, अनीतिलतासु कन्दति स निर्गुणसङ्गमः श्रेयोऽभिलषता किं श्रेयः? अर्थ
निर्गुण व्यक्तियों की संगति महिमारूपी कमल पर हिमपात के समान है, उदयधनधान्य आदि की वृद्धि करने वाले मेघ के लिए प्रचंड वायु के सदृश है, दयारूपी उपवन को रौंदने के लिए हाथी के तुल्य है, कल्याणरूपी गिरि को तोड़ने के लिए वज्र के समान है, कुमतिरूपी अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए इन्धन के समान है तथा अन्यायरूपी लताओं को पनपने के लिए कन्द के समान है क्या ऐसी संगति कल्याण की अभिलाषा करने वाले पुरुषों के लिए आश्रयणीय है? १६. इन्द्रियदमनप्रकरणम्
आत्मानं कुपथेन निर्गमयितुं यः शूकलाश्वायते,
कृत्याकृत्यविवेकजीवितहृतौ यः कृष्णसर्पायते। यः पुण्यद्रुमखण्डखण्डनविधौ स्फूर्जत्कुठारायते,
तं लुप्तव्रतमुद्रमिन्द्रियगणं जित्वा शुभंयुभव ।।६९।। अन्वयःयः आत्मानं कुपथेन निर्गमयितुं शूकलाश्वायते, यः कृत्याऽकृत्यविवेकजीवितहृतौ कृष्णसर्पायते, यः पुण्यद्रुमखण्डखण्डनविधौ स्फूर्जत् कुठारायते, तं लुप्तव्रतमुद्रम् इन्द्रियगणं जित्वा शुभंयुभव। अर्थ
जो आत्मा को कुपथ पर ले जाने के लिए दुष्ट घोड़े के समान है, जो कृत्य और अकृत्य के विवेकरूपी जीवन को हरण करने के लिए काले नाग की भांति है, जो पुण्यरूपी वृक्षों के वन को खंड-खंड करने के लिए तीक्ष्ण कुठार के समान है, उस १. हरिणीवृत्त। २. इस श्लोक में प्रयुक्त हिमति, चण्डानिलति, द्विरदति, वज्रति, समिधति तथा कन्दति-ये
सभी नामधातुएं हैं। ३. शार्दूलविक्रीडितवृत्त । ४. प्रस्तुत श्लोक में शूकलाश्वायते, कृष्णासायते, कुठारायते-ये सभी नामधातुएं है।
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