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सिन्दूरप्रकर
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न ब्रूते परदूषणं परगुणं वक्त्यल्पमप्यन्वहं,
___ सन्तोषं वहते परर्द्धिषु पराऽ।बाधासु धत्ते शुचम्। स्वश्लाघां न करोति नोज्झति नयं नौचित्यमुल्लङ्घय
त्युक्तोप्यप्रियमक्षमां न रचयत्येतच्चरित्रं सताम् ।।६४।। अन्वयः(यः) परदूषणं न ब्रूते, अल्पमपि परगुणम् अन्वहं वक्ति, परर्द्धिषु सन्तोषं वहते, पराबाधासु शुचं धत्ते, स्वश्लाघां न करोति, नयं नोज्झति, औचित्यं न उल्लङ्घयति, अप्रियम् उक्तोऽपि अक्षमां न रचयति। सताम् एतत् चरित्रं (वर्त्तते)। अर्थ
जो परदोष का कथन नहीं करता, जो दूसरों के अल्प गुणों का भी सदा वर्णन करता है, जो पर-सम्पदाओं में सन्तोष-अमत्सरभाव को धारण करता है, जो दूसरों की पीड़ा में खिन्नता व्यक्त करता है, जो अपनी श्लाघा नहीं करता, जो न्याय को नहीं छोड़ता, जो औचित्य का उल्लंघन नहीं करता, जो अप्रिय कहने पर भी क्रोध नहीं करता-यह सज्जन पुरुषों का चारित्र है। १५. गुणिसङ्गप्रकरणम्
२धर्म ध्वस्तदयो यशश्च्युतनयो वित्तं प्रमत्तः पुमान् , ___ काव्यं निष्प्रतिभस्तपः शमदयाशून्योऽल्पमेधाः श्रुतम्। वस्त्वालोकमलोचनश्चलमना ध्यानं च वाञ्छत्यसौ,
यः सङ्गं गुणिनां विमुच्य विमतिः कल्याणमाकाङ्क्षति ।।६५।। अन्वयःयो विमतिः गुणिनां सङ्गं विमुच्य कल्याणम् आकाङ्क्षति असौ पुमान् वस्तदयो धर्मम्, च्युतनयो यशः, प्रमत्तः वित्तम्, निष्प्रतिभः काव्यम्, शमदयाशून्यः तपः, अल्पमेधाः श्रुतम् , अलोचनो वस्त्वालोकम् , चलमनाः ध्यानं च वाञ्छति। अर्थ
जो मतिविहीन व्यक्ति गुणिजनों के संग को छोड़कर कल्याण की आकांक्षा करता है वह दयारहित होकर धर्म की इच्छा करता है, न्याय से च्युत होकर यश की कामना करता है, प्रमादी होकर धन प्राप्त करना चाहता है, प्रतिभा विकल होकर काव्य करने की अभिलाषा करता है, शम और दया से शून्य होकर तप की वांछा करता है, तुच्छ बुद्धि होकर श्रुत की आराधना करना चाहता है, लोचनविहीन होकर वस्तुओं को देखना चाहता है और चंचलमन होकर ध्यान करना चाहता है। १-२. शार्दूलविक्रीडितवृत्त।
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