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________________ उद्बोधक कथाएं ३८५ है। मेरे पास प्रज्ञप्ति - विद्या है। उसे आप साध लें। उसके प्रभाव से आपका वहां तक पहुंचना सुगम हो जाएगा, रास्ता भी निरापद हो जाएगा। राजा ने कनकमाला की बात मानकर विद्या की आराधना की, विद्या सिद्ध हुई और वह उसकी शक्ति से कुशलक्षेम अपनी राजधानी पहुंच गया । जनता ने अपने राजा को पाकर सारे नगर में अपूर्व उल्लास मनाया । सामन्तों ने अथ से लेकर इति तक राजा के मुख से सारा वृत्तान्त सुना । सबने आश्चर्य और हर्षमिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की । अब राजा पांच दिनों के अन्तराल से कनकमाला से मिलने के लिए उसी पर्वत पर जाने लगा। कुछ दिन वहां रहने के पश्चात् वह पुनः अपनी राजधानी लौट आता । उसका यह क्रम निरन्तर चलने लगा। जब लोग राज्य के अधिकारियों से पूछते कि राजाजी कहां हैं? तब उनका उत्तर होता कि राजाजी पर्वत पर गए हुए हैं। उसी के कारण कालान्तर में राजा का नाम सिंहरथ से नग्गति पड़ गया। एक दिन राजा मंत्री के साथ वन विहार के लिए निकला। मार्ग में उसकी दृष्टि एक आम्रवृक्ष पर पड़ी। वह आम का वृक्ष उसके मन को भा गया। वह आम के फलों से लदा हुआ था। उस पर मंजरियां आई हुई थीं। कोयल अपने मधुर स्वर से कुहक रही थी । उसकी सघन छाया सबको तृप्ति दे रही थी। राजा ने उस छाया में कुछ देर ठहर कर विश्राम किया और अतृप्त नेत्रों से आम्रवृक्ष को निहारता रहा। अन्त में जाते समय उसने अपने हाथों से कुछ आम तोड़े, उनका रसास्वादन किया और मधुर आमों की प्रशंसा करता हुआ वह अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थित हो गया। बहुत दिनों के पश्चात् राजा को कार्यवश कहीं जाना था। उसने जाने के लिए पुन: उसी मार्ग को चुना। परिचित मार्ग और परिचित वन । सहसा राजा का ध्यान उसी आम्रवृक्ष में अटक गया जो उसने बहुत दिन पहले देखा था। राजा की आंखें उस वनराज़ि में बार-बार उसी वृक्ष को खोजने और देखने का प्रयास कर रही थीं। पर उसकी नजरों में कहीं भी वह वृक्ष प्रतिबिम्बित नहीं हुआ। राजा की अकुलाहट और आंखों की भावभंगिमा को पढ़कर मंत्री समझ गया कि महाराज अवश्य ही कुछ जानने अथवा देखने के मूढ में हैं। तभी वे बार-बार अपनी दृष्टि और ग्रीवा को इधर-उधर घुमा रहे हैं। मंत्री ने साहस करके राजा से पूछ ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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