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________________ ३८६ सिन्दूरप्रकर लिया-महाराजश्री! आज आप किसकी उत्सुकता में हैं, जो आप इधरउधर झांक रहे हैं। तुमने ठीक ही पकड़ा। मुझे आज उस आम्रवृक्ष को देखने की इच्छा है जो हमने कुछ दिन पूर्व इसी मार्ग में देखा था। वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया, इससे लगता है कि या तो वह पीछे छूट गया है अथवा फिर वह आगे होगा। यदि तुम्हें वह वृक्ष कहीं दिखाई दे तो तुम मुझे भी बताना। कुछ दूर जाने पर मंत्री ने एक लूंठ वृक्ष की ओर संकेत करते हुए कहा-महाराजश्री! यह वही वृक्ष है, जिसे आप पूछ रहे थे। हैं, यह वही वृक्ष है, देखकर राजा अवाक रह गया। राजा समझ नहीं पाया कि इसकी ऐसी दुरवस्था क्यों हुई? राजा ने सोचा-वर्तमान में न तो इस पर फल हैं, न इस पर मंजरियां और पते हैं, न इस पर कोयल की कुहक है और न इस पर पक्षियों का कलरव है। यह सूखा तो क्यों सूखा? क्या किसी ने इसको पानी नहीं दिया? यह पहले कितना सुन्दर और मनोरम लग रहा था अब यह असुन्दर और भद्दा क्यों लग रहा है? क्या इसकी सुन्दरता पर किसी ने नजर लगा दी? आखिर इसमें इतना परिवर्तन क्यों और कैसे हुआ? ऐसे अनेक संकल्प-विकल्पों से घिरा हुआ राजा मंत्री से समाधान चाह रहा था। मंत्री ने राजा को समाहित करते हुए कहा-महाराज! संसार का नियम ही है कि कोई भी वस्तु अपने स्वरूप में एक समान नहीं रहती। उसमें सदा परिवर्तन होता रहता है। पहले यह वृक्ष तरुण अवस्था में था अब यह जरा और मौत के उन्मुख है। पहले इसका उदयकाल था अब इसका अस्तकाल है। जो वृक्ष इस पृथ्वी पर शोभा पाता है वह कभी न कभी शोभाविहीन भी होता है। यह सारी पौद्गलिक रचना का ही खेल है। इस सत्य को जानकर राजा का दृष्टिकोण बदल गया, चिन्तन में परिवर्तन हो गया। उसने सोचा-अरे! जहां ऋद्धि-समृद्धि होती है वहीं शोभा है, सरसता है, भव्यता है और वहीं स्वार्थ का पोषण होता है। जहां इसका अभाव होता है वहां कुरुपता, नीरसता और स्वार्थपरायणता झलकती है। जो प्रभात को देखता है उसे वृक्ष की भांति संध्या को भी देखना पड़ता है। यह उदय-अस्त की परम्परा सबके जीवन में घटित होती है। राजा को इस सत्य के आलोक में जातिस्मरणज्ञान हो गया। उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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