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उद्बोधक कथाएं
राजा ने अतीत के रहस्यों को खोलते हुए कहा-जिसकी भुजाओं का तुमने खून पीया, जिसकी जंघा का तुमने मांस खाया, फिर उसी पति को तुमने नदी में प्रवाहित कर दिया, ऐसी पतिव्रता नारी को धिक्कार है ! आज स्वयं को पतिव्रता कहकर तुम मुझे भी ठग रही हो।
यह सुनकर रानी भौचक्की-सी रह गई, मानो उसके पैरों तले धरती खिसक गई। अब रानी कहे तो क्या कहे? वह लज्जा और शर्म के मारे नीचे धंसी जा रही थी। वह बार-बार अपने निकृष्टतम अपराध की क्षमा मांगने लगी, भूल के लिए पश्चात्ताप करने लगी। राजा ने रानी और पंगु दोनों को अपने जनपद से निर्वासित कर दिया।
रानी सुकुमालिका ने स्पर्शनेन्द्रिय सुख की दासता के कारण बहुत दुःख भोगा।
३०. अनियन्त्रित इन्द्रियों का कहर दक्षिण भरतार्द्ध की माहेश्वरी नगरी धनिकों की नगरी थी। वहां बड़े-बड़े धनाढ्य और प्रचुर वैभवसंपन्न व्यक्ति रहते थे। उसी नगरी में सुयश नाम का एक सेठ भी था। उसका यश चारों ओर फैला हुआ था। उसकी पत्नी का नाम सुलसा था। उनके पांच पुत्र थे। उनके क्रमशः नाम थे-धर, धरण, यश, यशचन्द और चन्द। धर जब माता के गर्भ में आया तब मां सुलसा को संगीत सुनने का दोहद उत्पन्न हुआ था। दूसरे पुत्र धरण के गर्भ में आने पर मां को सुन्दर-सुन्दर वस्तुएं देखने का, तीसरे पुत्र यश के गर्भकाल में सेठानी सुलसा को सुगन्धित द्रव्य सूंघने का और चौथे पुत्र यशचन्द के उदर में आने पर सुस्वादु व्यंजन खाने का दोहद उत्पन्न हुआ था। वह सरस भोजन करके ही तृप्त होती थी। जब पांचवां पुत्र चन्द गर्भ में आया तब उसे स्पर्श-सुख का दोहद उत्पन्न हुआ। उसे सुकोमल शय्या और सुकोमल आसन ही रुचिकर लगते थे, अधिकाधिक शरीरसुख की इच्छा रहती थी। ___पांचों पुत्र युवा हुए। गर्भकाल में मां को जिस-जिस दोहद की अनुभूति हुई थी वे ही प्रवृत्तियां और वे ही लक्षण पुत्रों में भी प्रकट होने लगे। पुत्र अनेक कलाओं में पारंगत हुए। समय आने पर उनका सुयोग्य कन्याओं से विवाह भी कर दिया गया। पिता के आग्रह से सभी पुत्र व्यापार में प्रवृत्त हुए। उन्होंने थोड़ी-बहुत कमाई भी की, किन्तु अपनी
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