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सिन्दूरप्रकर उत्पन्न हुई है। राजा ने रानी के वासगृह को देखा, वहां पर मनुष्यों के हाथ-पैर मंडे हुए थे और रानी का मुंह रक्त से सना हुआ था। राजा
को विश्वास हो गया कि मारी यहीं से उत्पन्न हई है। उसने चांडालों को निर्देश दिया कि मध्यरात्रि के समय जहां कोई न देखता हो वहां इसे मार डालो। निर्देश स्वीकार कर चाण्डाल रात्रि में रानी को अपने घर ले गए। वह वणिकपुत्र भी वहां आ गया। वे उसे मारने का उपक्रम करने लगे। उस वणिकपुत्र ने चांडालों को प्रचुर धन देकर रानी को इस शर्त पर छुड़ा लिया कि वह इस देश को छोड़कर किसी दूसरे देश में चला जाएगा। रानी ने सोचा-इस युवक ने अकारण ही मेरे पर करुणा की है, मुझे मौत से बचाया है, यह मेरा परम उपकारी है। उसका उसके प्रति अनुबन्ध हो गया। वह उसके साथ अनुराग के धागे में बन्ध गई। वह वणिकपुत्र उसको लेकर दूसरे देश में चला गया। वहां जाकर दोनों भोग भोगते हुए सुखपूर्वक रहने लगे। ___ एक बार वह तरुण वणिकपुत्र नाटक देखने के लिए प्रस्थित होने वाला था। रानी स्नेह के वशीभूत होकर उसे भेजना नहीं चाहती थी। उसके स्नेह को देखकर वह युवक हंसा। रानी ने हंसने का कारण पूछा तो उसने यथार्थ बात बताते हुए कहा कि मैं नटिनी के रूप में अनुरक्त हूं। यह सुनकर रानी के मन को ठेस पहुंची और सोचा--जिस युवक को मैं तन-मन से चाह रही हूं वही मुझे भी ठुकरा रहा है और किसी अन्य के प्रेम में पागल बना हुआ है तब मुझे किस पर विश्वास करना चाहिए? यह सोचकर रानी उससे विरक्त हो गई। वह दीक्षा लेकर संयमजीवन व्यतीत करने लगी। वह वणिकपुत्र रानी को न देख सकने के कारण दुःखी रहने लगा और उसके वियोग में आर्त-रौद्र ध्यान में मरकर नरक में उत्पन्न हुआ। ३. घ्राणेन्द्रिय की दासता ___एक कुमार घ्राणेन्द्रिय-विषय के वशवर्ती था। उसे हमेशा नए-नए सुगन्धित द्रव्यों को सूंघने की इच्छा रहती थी। वह नौकाओं में क्रीड़ाविहार किया करता था। एक दिन उसकी सौतेली मां ने मंजूषा में विष रखकर उसे नदी में बहा दिया। कुमार ने नदी में आती हई मंजूषा को देखा। उसने नदी से मंजूषा को निकाला और तट पर ले आया। वह उसे खोलकर देखने लगा। उस मंजूषा के भीतर एक छोटी मंजूषा भी थी। मन में कुतूहल जागा कि इसमें क्या है? वह उसे खोलकर देखने लगा। उसमें
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