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उद्बोधक कथाएं से गन्ध आ रही थी। गंधप्रिय कुमार ने उसे गन्धद्रव्य जानकर सूंघा। सूंघते ही विष का प्रभाव शरीर में हुआ और वहीं उसका प्राणान्त हो गया। ४. रसनेन्द्रिय की दासता
एक राजा था। वह आम खाने का बहुत शौकीन था। जहां कहीं भी वह आमों को देखता अनायास ही उसकी रसलोलुपता आम खाने के लिए मचल उठती। एक बार राजा को आम खाने से अजीर्ण हुआ। कई वैद्य चिकित्सा करने के लिए बुलाए गए। उन्होंने राजा की चिकित्सा की। राजा स्वस्थ हो गया। वैद्यों ने राजा को सावधान करते हुए कहाराजन्! आम खाना आपके स्वास्थ्य के लिए सर्वथा प्रतिकूल है। यदि आप भविष्य में कभी आम का सेवन करोगे तो शायद आपको जीवन से भी हाथ धोना पड़ सकता है। इसलिए आम न खाना ही आपके लिए श्रेयस्कर है। वैद्यों का वह कथन राजा के लिए एक चेतावनी और अनिष्ट की संभावना का सूचक था। पर आदत की लाचारी बहुत खराब होती है। उस समय जीभ पर संयम करना बड़ा कठिन होता है। राजा जब भी आमों को देखता उसका मन आमों को खाने के लिए आतुर हो जाता। मंत्री राजा के स्वास्थ्य के प्रति अति जागरूक था। उसने राजा के अनिष्ट को देखते हुए अपने राज्य में आमों के अनेक बगीचों को उजड़वा दिया। जहां कहीं भी मंत्री को यह मालूम हो जाता कि वहां आम के पेड़ हैं तो वह उन्हें जड़मूल से उखड़वा देता। इस प्रकार मंत्री के प्रयत्न से सारे राज्य में आमों का उत्पादन तथा क्रय-विक्रय का कारोबार ही बन्द हो गया।
__ एक दिन राजा को वन-विहार करने की इच्छा हुई। वह अपने मंत्री के साथ घोड़े पर चढ़कर जंगल में गया। चलते-चलते वह किसी दूसरे राज्य की सीमा में पहुंच गया। वहां आम के वृक्षों की बहुलता थी। आमों की सुगन्ध से आस-पास का वातावरण भी सुगन्धित था। मार्ग की थकान से राजा बहुत थक गया था। उसने विश्राम करने की इच्छा व्यक्त की। कुछ ही दूरी पर उसे आम के छायादार वृक्ष दिखाई दिए। राजा उनकी सघन छाया में विश्राम करना चाहता था। मंत्री ने उन्हें रोका और चेतावनी देते हुए कहा-महाराजन्! वैद्यों की सख्त मनाही है। आप वहां न जाएं, यहीं कहीं विश्राम कर लें। राजा ने अपने मन्तव्य को रखते हुए
कहा-मंत्रीवर! वैद्यों ने तो मुझे आम खाने का निषेध किया है, वहां Jain Education International For Private & Personal Use Only
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