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सिन्दूरप्रकर सज्जन ब्राह्मण ने हाथ जोड़कर कहा-आपने मुझे अच्छा सुझाव दिया है। भविष्य में मैं इसका पूरा ध्यान रखूगा।
अब ब्राह्मण प्रतिदिन राजसभा में मुंह पर कपड़ा बांधकर आने लगा। जब भी वह राजा से कोई बात करता तो पुरोहितजी द्वारा सुझाई गई विधि से बात करता, मुंह पर वस्त्र बांध लेता। उधर पुरोहितजी ने भी ब्राह्मण की अनुपस्थिति में राजा के कानों को भरना शुरू कर दिया। उसने राजा को बहकाते हुए कहा-महाराजश्री ! यह ब्राह्मण आपको गरीब और भला लगता होगा, पर है बड़ा दुर्जन। यह प्रतिदिन आपको आशीर्वाद देकर केवल आपका मन बहलाता है। क्या सभी सफेद वस्तुएं दूध हो सकती हैं? यह आपके सामने दूध जैसा व्यवहार करता है, किन्तु इसका आचरण अत्यन्त निकृष्ट है। यह कहने को तो ब्राह्मण है, किन्तु बहुत बड़ा पियक्कड़ भी है, प्रतिदिन शराब पीता है। और क्या कहूं ? यह ब्राह्मण जाति से भी बहिष्कृत है। कहीं इसका आदर-सम्मान नहीं है, फिर महाराजश्री उससे बात करें, उसे पुरस्कृत करें तो यह आपश्री के लिए शोभनीय कैसे हो सकता है?
राजा ने आश्चर्य से भरते हुए कहा-पुरोहितजी! तुमने जो कहा वह सत्य ही होगा, पर मैंने ऐसा कुछ अनुभव नहीं किया। उसकी आकृति तो यह नहीं कहती कि वह शराब पीता है।
कुटिलता से पुरोहितजी ने कहा-महाराजश्री! आप करुणाशील हैं। आप तो सबको एक ही तराजू में तोलते हैं। अच्छा कौन है और बुरा कौन है ? इसकी पहचान निकट रहने वाला व्यक्ति ही कर सकता है। वही उसका प्रमाण भी प्रस्तुत कर सकता है।
राजा ने मुस्कराते हुए पूछा-क्या ऐसा कोई प्रमाण तुम्हारे पास है, जिससे उसकी नशे की आदत का पता लग सके?
महाराजश्री! प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? जिस दिन वह शराब पीकर आपके पास आएगा उस दिन उसके मुंह पर कपड़ा बन्धा होगा। वह आप से मुंह पर कपड़ा रखकर ही बात करेगा, जिससे शराब की गन्ध आपश्री को न आए।
राजा कानों के कच्चे होते हैं। उनके सामने जो भी कहा जाता है वैसी ही धारणा अपने भीतर जमा लेते हैं। राजा के मन में भी ब्राह्मण के प्रति एक गलत धारणा बैठ गई।
प्रतिदिन की भांति अगले दिन ब्राह्मण राजसभा में उपस्थित हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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