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उद्बोधक कथाएं
३२१ महाबल के पास आ गए। सभी ने धर्मघोष मुनि के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। ____ सभी मुनि साथ-साथ रहते हुए अपने आपको संयमसाधना से भावित करने लगे। एक बार सातों मुनियों में मंत्रणा हुई कि तपस्या भी हम सभी को एक जैसी करनी चाहिए। यदि कोई उपवास तप करता है तो सभी को उसी के अनुसार उपवास तप करना चाहिए। इसी प्रकार यदि कोई चतुर्थ भक्त, षष्ठ भक्त, अष्टम भक्त, दशम भक्त, द्वादश भक्त तथा पाक्षिक अथवा मासिक तप से अपने आपको भावित करता है तो सभी को उसी प्रकार का तप आचरणीय होगा। सभी ने सहर्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। सभी मुनि तपःसाधना में लीन होकर तपश्चर्या में लग गए। तप करते-करते कुछ दिन बीत गए। एक दिन मुनि महाबल ने मन ही मन सोचा-यदि मैं सबके साथ तपस्या करता हूं तो उसमें मेरी विशेषता ही क्या है? विशेषता तो तब है जब मैं इनसे बड़ी तपस्या करूं। ऐसा सोचकर मुनि महाबल मायापूर्वक तपश्चर्या में प्रवृत्त हुए। यदि छहों मुनि चतुर्थ भक्त तप को अंगीकार करते तो महाबल मुनि उनको बिना बताए षष्ठ भक्त तप को स्वीकार कर लेते। यदि महाबल के साथी मुनि षष्ठ भक्त अथवा अष्टम भक्त तप का आचरण करते तो महाबल अष्टम भक्त अथवा दशम भक्त तप को स्वीकार कर लेते। यदि वे अनगार दशम भक्त तप करते तो वे द्वादश भक्त तप का प्रत्याख्यान कर लेते। इस प्रकार श्रमण महाबल ने कपटपूर्वक तपस्या के कारण स्त्रीनामगोत्र कर्म का उपार्जन किया और अर्हत्, सिद्ध, प्रवचन, गुरु, स्थविर, बहुश्रुत और तपस्वी के प्रति वत्सलता आदि बीस कारणों के आसेवन तथा पुनःपुनः अभ्यास करने से तीर्थंकर नामगोत्र कर्म का उपार्जन किया।
इस प्रकार तपःसाधना से स्वयं को भावित करते हुए निर्ग्रन्थ महाबल ने चौरासी लाख वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन किया। आयुष्य पूर्ण कर वे जयन्त विमान में देवरूप में उत्पन्न हुए। उसके बाद वे बत्तीस सागरोपम स्थिति वाले जयन्त विमान से च्युत होकर जम्बूद्वीप भारतवर्ष की मिथिला राजधानी में कुम्भ राजा के घर प्रभावती देवी की कुक्षि से पुत्रीरूप में उत्पन्न हुए। महादेवी प्रभावती को गर्भकाल में मल्लिका के फूलों की शैय्या में बैठने का दोहद उत्पन्न हुआ था, इसलिए पुत्री का नाम मल्लिकुमारी रखा गया। आगे जाकर मल्लिकुमारी तीर्थंकर परम्परा
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