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________________ ३२२ सिन्दूरप्रकर में उन्नीसवें तीर्थंकर हुए। दिगम्बर परम्परा और कुछेक आधुनिक विद्वान् तीर्थकर मल्लिनाथ को पुरुषरूप में मानते हैं, यह परम्पराभेद है। २३. लोभ की पराकाष्ठा काली कजरारी रात। वर्षा का मौसम। मेघाच्छन्न आकाश। चारों ओर कौंधती हुई बिजली। बरसती हुई वर्षा। ___ महाराज श्रेणिक महारानी चेलना के साथ राजभवन के वातायन में बैठे हुए थे। वातायन से ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी। वे रात्रि के नीरव वातावरण को निहारते हुए प्रकृति के आनन्द में समरस बने हुए थे। एकाएक बिजली कौंधने के साथ प्रचण्ड गर्जारव हुआ। उसको सुनकर महारानी चेलना क्षणभर के लिए भय से कुछ सहम गई। उसने कौंधती हुई बिजली के तीव्र प्रकाश में एक वृद्ध पुरुष को देखा। वह वृद्ध पुरुष राजभवन के कुछ ही दूर नदी में खड़ा-खड़ा पानी में बहकर आने वाले बड़े-बड़े लट्ठों को निकाल कर किनारे पर रख रहा था। रानी का अन्तःकरण दरिद्र व्यक्ति को देखकर सिहर उठा। उसने सोचा-कितना दयनीय और निर्धन है यह व्यक्ति? रात्रि की घोर अमां में भी इतना कठोर परिश्रम ! इससे लगता है कि इसे दो जून रोटी भी नसीब नहीं है। यह अत्यन्त निर्धनता का जीवन जी रहा है। हमारे राज्य में ऐसे भी लोग हैं, यह इस व्यक्ति को देखने से पता लगता है। महारानी चेलना तत्काल राजा श्रेणिक को बिजली के प्रकाश में संकेत से उस पुरुष को दिखाती हई बोली-लगता है राजा लोग भी वर्षा की नदियों के समान होते हैं। वे भरे हुए को अधिक भरते हैं, जो रिक्त होते हैं उन्हें सदा रिक्त ही रखने का प्रयत्न करते हैं। आपके राज्य में भी ऐसे दरिद्र लोग हैं, उनको भरने का प्रयत्न आप क्यों नहीं करते? आप प्रजापालक हैं, प्रजा की चिन्ता करने वाले हैं, फिर आपके राज्य में ऐसे दरिद्र व्यक्ति रहें, यह कैसा न्याय, यह कैसी शोभा? आपकी दानवीरता और करुणा का लाभ ऐसे लोगों को भी मिले, यही मेरा आपसे निवेदन है। राजा श्रेणिक ने महारानी के कथन को गंभीरता से लेते हुए राज्यस्थिति की ओर ध्यान देने का वचन दिया। रात्रि बीती। प्रातःकाल हुआ। सूर्य की रश्मियां फैली। राजा ने अपने अनुचरों को निर्देश देते Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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