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________________ २३ श्लोक ३५-३८ घनमण्डलम् , कुगतिगमने मार्गः, स्वर्गापवर्गपुरार्गलं स्तेयं हितकाक्षिणां नृणां नियतमनुपादेयम् (स्यात् )। अर्थ____ चौर्य कर्म दूसरों के मन को पीड़ा पहुंचाने के लिए क्रीडावन है, हिंसा की भावना का उत्पत्ति-स्थल है, पृथ्वी पर फैलने वाली विपत्तिरूप लताओं के लिए मेघपटल है, कुगति में जाने का मार्ग है तथा स्वर्ग और मोक्षरूप नगर के लिए आगल है। अतः हित चाहने वाले मनुष्यों के लिए चौर्य कर्म निश्चित ही अनुपादेय है-त्याज्य है। ८. शीलप्रकरणम् दत्तस्तेन जगत्यकीर्तिपटहो गोत्रे मषीकूर्चकः, चारित्रस्य जलाजलिर्गुणगणारामस्य दावानलः। संकेतः सकलापदां शिवपुरद्वारे कपाटो दृढः, २शीलं येन निजं विलुप्तमखिलं त्रैलोक्यचिन्तामणिः ।।३७।। अन्वयःयेन त्रैलोक्यचिन्तामणिः निजम् अखिलं शीलं विलुप्तं तेन जगति अकीर्तिपटहो दत्तः, गोत्रे मषीकूर्चकः (दत्तः), चारित्रस्य जलाञ्जलिः (दत्तः), गुणगणारामस्य दावानलः (दत्तः), सकलापदां संकेतः (दत्तः), शिवपुरद्वारे दृढः कपाटः (दत्तः)। अर्थ जो व्यक्ति तीनों लोकों में चिन्तामणि रत्न के समान अपने शील को सम्पूर्णरूप से खंडित कर देता है वह जगत् में अपयश के पटह को बजाता है, कुल की निर्मलता पर कालिख पोतता है, चारित्र को जलाञ्जलि देता है, गुणसमूहरूपी उपवन में दवाग्नि लगाता है, समस्त आपदाओं को आमन्त्रण देता है और मुक्तिनगर के द्वार पर दृढ कपाट लगाता है, उसे बन्द कर देता है। व्याघ्रव्यालजलानलादिविपदस्तेषां व्रजन्ति क्षयं, कल्याणानि समुल्लसन्ति विबुधाः सान्निध्यमध्यासते। कीर्तिः स्फूर्त्तिमियर्ति यात्युपचयं धर्मः प्रणश्यत्यघं, स्वर्निर्वाणसुखानि संनिदधते ये शीलमाबिभ्रते ।।३८।। - १. शार्दूलविक्रीडितवृत्त। २. 'शीलं येन......' इसके स्थान पर 'कामातस्त्यजति प्रबोधयति वा स्वस्त्रों परस्त्रीं न यः' ऐसा पाठ मानने पर इसका अर्थ होगा-जो कामपीड़ित मनुष्य अपनी स्त्री से संतुष्ट नहीं होता और पराई स्त्री का त्याग नहीं करता, वह ....। ३. शार्दूलविक्रीडितवृत्त। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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