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________________ उद्बोधक कथाएं ३१९ स्तब्ध और हक्के-बक्के-से रह गए। रूप का गर्व चकनाचूर हो गया। अब सम्राट् किसका गर्व करें! किस पर करें! जो पास में था वह नष्ट हो चुका था। अब केवल शेष थी परमार्थ की साधना। वे आत्मोपलब्धि के लिए साधनापथ पर बढ़ गए, प्रवजित हो गए। त्याग-तपस्या से अपने आपको भावित किया और अंत में वे सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए। २२. तीर्थंकर मल्लि स्त्री क्यों? इस अवसर्पिणी काल में जैन परम्परा में चौबीस तीर्थंकर हुए। उनमें उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ भगवान् थे। पूर्वभव में भगवान मल्लिनाथ का जीव 'महाबल' था। जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में वीतशोका नाम की एक विशाल, समृद्ध और दर्शनीय नगरी थी। उसके शासक बल राजा थे। उनकी महारानी का नाम धारिणी था। वह एक हजार रानियों में पटरानी थी। महारानी धारिणी के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ। वह महाबल के नाम से प्रख्यात हुआ। ___ यौवन की दहलीज पर पांव रखते ही कुमार महाबल विवाहसूत्र में बंध गए। उनका कमलश्री आदि पांच सौ कन्याओं से पाणिग्रहण हुआ। महाबल के पिता बल एकछत्र राज्यशासन चला रहे थे। राज्य में किसी भी चीज का अभाव नहीं था। प्रजा राजा की न्याय-नीति से प्रभावित और धन-धान्य से समृद्ध थी। __एक बार ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए धर्मघोष महास्थविर नगर के बाहर इन्द्रकुम्भ उद्यान में पधारे। वनमाली ने राजा बल को मुनि के आगमन की सूचना दी। राजा ने हर्षविभोर होते हुए सारे नगर में महास्थविर के पदार्पण की घोषणा करा दी। जनता मुनि के वन्दनार्थ और धर्मोपदेशश्रवणार्थ उद्यान की ओर जाने लगी। राजा भी राजपरिवार सहित मुनिराज की वन्दना हेतु वहां आए। उन्होंने मुनिराज का प्रवचन सुना। वे प्रवचन सुनकर प्रतिबुद्ध हुए, मन में वैराग्य का अंकुर प्रस्फुटित हुआ। संसार की क्षण-भंगुरता को जानकर उनका चित्त प्रव्रज्याग्रहण करने के लिए उत्सुक हो उठा। उन्होंने धर्मघोष मुनि से निवेदन करते हुए कहा-भन्ते! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा रखता हूं। मैं संसार से विरक्त होकर अगार से अनगार बनना चाहता हूं, प्रव्रजित होना चाहता हूं। मुनिराज ने उन्हें संबोध देते हुए कहा-जैसा तुम्हें सुख हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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