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उद्बोधक कथाएं
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चाहिए। यह भी कोई चाल होती है कि मदोन्मत्त सांड की तरह दौड़ा जा रहा है। तुझे पता नहीं कि मैं तपस्वी हूं । तपस्वी हूं, इसलिए तुझे क्षमा दे रहा हूं, वरना क्या का क्या घटित हो जाता। जैसे तैसे मुनि सहारा लेकर खड़े हुए।
इतना सुनते ही धोबी भी आगबबूला हो गया। उसने मुनि को कोसते हुए कहा- मुझे अन्धा कहने की तुम्हारी यह हिम्मत ! अन्धा तो तू है जो खुद आकर मेरे से टकराया। मैंने तो तुझे बचाया है, नहीं तो मेरे सामने इन मुट्ठीभर हड्डियों का क्या पता लगता ?
इतना सुनकर तपस्वी मुनि और अधिक क्रोध से तमतमा उठे। आंखें लालिमा से रक्त हो गई। धोबी को घूरते हुए कहने लगे - मूर्ख कहीं का ! दोष किसका और मुझे दोषी करार दे रहा है। अपनी गलती को मेरे पर ST कर स्वयं को निर्दोष साबित कर रहा है। तत्काल यहां से चला जा । यदि मेरे से अड़ा तो उसका परिणाम भी देख लेना।
मुझे परिणाम दिखाएगा । है तेरे में क्षमता ? शरीर में तो ताकत है नहीं, केवल थूक बिलो रहा है। तू मुझे क्या दिखाएगा? मैं ही तुझे मजा चखाता हूं - यह कहकर धोबी ने मुनि का गला पकड़कर उनको जमीन पर पटक दिया। वह स्वयं उनकी छाती पर बैठ गया । धरती पर उन्हें खूब रौंदा, पटका, घसीटा। फिर बोला - देख लिया मजा मेरे से अड़ने का । अब कुछ अक्ल ठिकाने आई। अन्यथा तेरी कपालक्रिया कर देता ।
तत्काल मुनि को अपने साधुत्व का भान हुआ । उन्होंने मन ही मन सोचा- मैं श्रमण हूं, संयमी हूं। क्या मुझे इस धोबी से झगड़ना शोभा देता है ? क्रोध तो मुझे अपनी छद्मस्थता के कारण आ गया। वह मुझे नहीं करना चाहिए था। उन्होंने धोबी से कहा- भाई ! गलती तो मेरे से हो गई। अब तू मुझे छोड़ दे। मैं हारा तू जीता, इससे अधिक मैं तुझे क्या कहूं? धोबी ने कहा- नहीं, नहीं अभी भी तेरे में अकड़न है। यदि तेरे में कुछ है तो करले ।
मुनि क्या बोले ? उन्होंने उस समय शान्त रहना ही उचित समझा। मुनि को मौन देखकर धोबी वहां से चला गया। मुनि का तप से कृश बना हुआ शरीर भीतरी वेदना का अनुभव कर रहा था और मन ही मन पश्चात्ताप भी था कि आज मैंने व्यर्थ ही एक झगड़े को अपने सिर पर ले लिया। इतने में अचानक सेवा में रहने वाला देव मुनि के सामने उपस्थित हुआ। उसने मुनि के चरणों को छुआ और सुख-पृच्छा की। मुनि
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