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________________ ३०३ उद्बोधक कथाएं १७. क्रोध और क्षमा की प्रतिमूर्ति : अतूंकारी भट्टा ___ क्यों बहिन! तुम्हारे घर में लक्षपाक तैल मिल सकता है? एक मुनि के शरीर में भयंकर पीड़ा है। उसके उपचार के लिए हमें वह तैल चाहिए?' मुनियुगल ने बहिन अतूंकारी भट्टा से पूछा। 'हां, मुनिराज! वह तैल मेरे घर में सूझता है। आप कुछ क्षण रुकिए, मैं अभी मंगाती हूं, यह कहकर भट्टा ने अपनी दासी को अन्दर से तैल लाने को कहा।' दासी कमरे के भीतर गई। ज्योंही उसने तैल से भरा घड़ा उठाने का प्रयास किया अचानक वह उसके हाथों से छूट गया। घड़ा जमीन पर गिरा और फूट गया। सारा तैल जमीन पर इधर-उधर छितर गया। दासी यह देखकर घबराई कि भट्टा मुझे क्या कहेगी? मुझे आज उसके कोप का भाजन बनना होगा। पता नहीं वह मुझे कितनी डांट-फटकार देगी? दासी ने बाहर आकर अनमना होकर भट्टा से वस्तुस्थिति निवेदित की। भट्टा ने उसे सान्त्वना देते हुए शान्तभाव से कहा-चलो, कोई बात नहीं, जाओ, तैल का दूसरा घड़ा ले आओ। दासी दोबारा कमरे में गई। वह तैल का दूसरा घड़ा उठाकर दहलीज तक ही आई थी कि एकाएक वह घड़ा भी उसके हाथों से फिसल कर जमीन पर गिरा और फूट गया। सारा तैल भूमि पर पानी की तरह छितर गया। दासी बहुत चिन्तित हुई कि मेरे हाथों एक नहीं, दो घड़ों का नुकसान हो गया। कितना बहुमूल्य तैल ऐसे ही व्यर्थ चला गया? इस बार तो गृहस्वामिनी अवश्य ही मेरे पर कुपित होगी और पता नहीं मुझे कितना उलाहना देगी? पर भट्टा ने उस पर तनिक भी क्रोध नहीं किया और न उसे किसी प्रकार का उलाहना ही दिया। उसने सहजभाव से यही कहा-तैल बेकार चला गया, इसमें इतना अधिक सोचने की क्या बात है? वस्तु का धर्म है अनित्य। अपने यहां लक्षपाक तैल के दो घड़े और विद्यमान हैं, जाओ, उनमें से एक घड़े को ले आओ। दासी घबराई हुई कमरे में गई। उसने तीसरे घड़े को अत्यन्त सावधानीपूर्वक उठाया। उसे लेकर वह भट्टा के पास पहुंची ही थी कि वह स्वयं वहां फिसल गई और धड़ाम से जमीन पर गिर गई। घड़ा हाथ से छूटकर जमीन पर गिरते ही फूट गया। सारा तैल भूमि पर छितर गया। अब तो दासी की बड़ी विचित्र स्थिति हो गई। भट्टा ने तत्काल For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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