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________________ सिन्दूरप्रकर इस घटना के घटित होने के पश्चात् सेठ सुदर्शन का सुयश दिदिगन्त में फैल गया। कालान्तर में चतुर्विध ज्ञान के धारक धर्मघोष स्थविर चम्पा नगरी में पधारे। उनसे प्रतिबुद्ध होकर सेठ सुदर्शन मुनि सुदर्शन बन गए। उन्होंने अनेक उपसर्गों को सहन किया। मुनिचर्या का सम्यक् प्रकार से निर्वहन करते हुए वे शुभध्यान एवं शुभ-अध्यवसायों से चार घनघाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञानी बन गए और अन्त में सब कर्मों का क्षयकर सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो गए। २९६ १५. शील सुकर या दुष्कर ? काली - कजरारी रात। सर्दी का मौसम । ठंडक प्राणिमात्र को अपनेअपने घरों में रहने के लिए बाध्य कर रही थी । फिर भी श्रद्धालुजनों की भीड़ कथा श्रवण के लिए नगर के बाहर जा रही थी। शहर के बाहर एक विशाल मठ था। वहां एक ब्रह्मचारी बाबा प्रतिदिन कथा किया करता था। उसकी वाणी में जादू भी था और मिठास भी। दोनों से आकृष्ट होकर जनता सर्दी-गर्मी की परवाह किए बिना उस वाणी का रसास्वादन किया करती थी । एक दिन बाबाजी कथा का वाचन कर रहा था । प्रसंगवश उसमें एक जगह ब्रह्मचर्य का प्रकरण आ गया। उस सन्दर्भ में लिखा था- 'शीलं दुष्करम्' अर्थात् शील का पालन करना अति कठिन है। बाबाजी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था । उसने अपने भक्तों से कहापता नहीं, शास्त्रों में क्या कुछ लिख दिया जाता है। ब्रह्मचर्य के पालन में कौनसी तपस्या करनी पड़ती है, कौनसा अनुष्ठान करना पड़ता है, कौनसा जप और ध्यान का अभ्यास करना पड़ता है? मैं भी तो बालब्रह्मचारी हूं। मुझे तो इसमें कुछ भी कठिनाई का अनुभव नहीं हुआ । अच्छा होता कि 'शीलं दुष्करम्' के स्थान पर 'शीलं सुकरम्' - शील का पालन करना सरल है, लिखा होता । तत्काल बाबा ने कलम मंगाई और उसने उस पंक्ति को काट दिया जहां 'शीलं दुष्करम्' लिखा हुआ था। उसके स्थान पर उसने 'शीलं सुकरम्' कर दिया। भक्तों ने बाबा का यह कहकर प्रतिवाद भी किया कि बाबाजी ! शास्त्रों की वाणी अनुभूत सत्य है। सत्यद्रष्टाओं ने उस सत्य का अनुभव करके ही लिखा है । वह शाश्वत सत्य कभी मिथ्या नहीं हो सकता। आप For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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