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________________ २८७ उद्बोधक कथाएं एक दिन राजा चंडप्रद्योत को किसी कार्यवश राजधानी से बाहर जाना था। राजा के साथ मंत्री का रहना अनिवार्य था, किन्तु मंत्री भूदेव रोग का बहाना बनाकर घर पर ही रहा। उसे उस दिन अच्छा अवसर मिल गया। उसने मौके का लाभ उठाया और वह सीधा राजमहल में चला गया। महारानी उसे देखते ही सावचेत हो गई। उसके हावभावों में मलिनता झलक रही थी, चेष्टाओं में दुश्चेष्टाओं की बू आ रही थी। रानी ने समझ लिया कि यह मेरा शील भंग करने की नीयत से यहां आया है, अन्यथा इसे तो अपने कर्तव्य के अनुसार राजा के साथ जाना चाहिए था। भूदेव ने अपने मन के अन्तर्पट को खोलते हुए कहा-साम्राज्ञी! यह दास पुनः आपके चरणों में आया है। आज सुनहरा अवसर है। महाराज भी बाहर गए हुए हैं। इस मिलन के अवसर को आप न गवाएं। आप मुझे अपने सौन्दर्य-पान और सह-मिलन का अवसर दें। यह कहकर मंत्री ने कामांध होकर रानी का आलिंगन करना चाहा। ऐसी दुश्चेष्टा को देखकर रानी के आंखें अंगारों के समान जल उठीं। उसने सिंहनी के समान गर्जना करते हुए कहा-अरे दुष्ट! नराधम! मेरी आंखों से दूर हट जा। एक कदम भी आगे बढ़ाया तो समझ लेना कि तेरा सत्यानास अवश्यम्भावी है। तू प्रेम का ढोंग रचाकर, मित्रता का बहाना बनाकर यह पाप करना चाहता है। तुझे पता है कि राजा की पत्नी, मित्र की पत्नी मां के समान होती है। अपनी मां के साथ भी ऐसी दुश्चेष्टा! तुझे धिक्कार है। ___महारानी की गर्जना सुनकर मंत्री घबराया और वह राजमहल के पिछवाड़े से खिसियाइ बिल्ली की भांति खिसक गया। अब उसे एक ही चिन्ता सता रही थी कि कहीं महाराज को इस गुप्त रहस्य का पता न लग जाए, अन्यथा मुझे भयंकर दंड से गुजरना होगा। राजा चंडप्रद्योत बाहर से उज्जयिनी आया। मंत्री का पता किया तो ज्ञात हुआ कि वह बीमार है। राजा रानी के साथ उसके स्वास्थ्य की जानकारी के लिए उसके घर गया। रानी को देखकर मंत्री का दिल और अधिक धड़कने लगा। उसने सोचा-अब शायद मेरी पोल अवश्य खुलेगी और मुझे राजा के कोप का भाजन बनना होगा। रानी ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया। वह तो केवल मंत्री को स्वकृत अपराध का बोध कराना चाहती थी। रानी मौन थी, किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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