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उद्बोधक कथाएं
२७९ असत्य से आच्छन्न था। राजा ने सत्य को तिरोहित करते हुए जब अपना निर्णय देना चाहा तब सभा में एक गहरी खामोशी छा गई। जनता उत्कर्ण होकर राजा को सुनने में तत्लीन हो गई। राजा ने कुछ गम्भीर होते हुए कहा-महानुभावो। मैं न्याय के सिंहासन पर बैठा हूं। न्याय करना मेरा काम है। वह निर्णय किसी के पक्ष में जा सकता है अथवा किसी के विपक्ष में। पर न्याय न्याय ही होता है। अभी मैंने अजशब्द को लेकर दोनों पक्षों को सुना। उसका एक अर्थ है-बकरा तो दूसरा अर्थ है-पुराना धान्य। मेरे मतानुसार अज का अर्थ बकरा ही है, क्योंकि मैंने अपने गुरु उपाध्यायजी के मुंह से भी ऐसा सुना था। ___ इतना सुनते ही सारी सभा स्तब्ध-सी रह गई। पर्वतक के समर्थक अपने पक्ष में निर्णय सुनकर हर्ष से बांसों उच्छलने लगे। नारद के समर्थकों में मायूसी छा गई। अब स्वकृत प्रतिज्ञा के अनुसार नारदजी के लिए अपनी गर्दन उतरवाने का अवसर था। फिर भी सत्यप्रिय नारद ने गरजते हुए कहा-अरे! है कोई सत्यसहायक देव! न्याय के सिंहासन पर बैठकर राजा भी इस प्रकार का पक्षपातपूर्ण फैसला देते हैं तो इस पृथ्वी पर धर्म का रक्षक कौन होगा? यदि मेरा पक्ष सत्य से परिपूर्ण है तो ऐसे पक्षपाती राजा को हाथों-हाथ फल मिलना चाहिए। इतना कहते ही राजा वसु धड़ाम से सिंहासन सहित नीचे भूमि पर आ गिरे। उनको ऐसी मर्मस्पर्शी चोट लगी कि वहीं उनका प्राणान्त हो गया। इस घटना से लोगों को एक बोधपाठ सीखने को मिला कि असत्य बोलने का कितना घातक परिणाम होता है?
१२. चिलातपुत्र मगध जनपद का रमणीय और आकर्षक नगर राजगृह। वह सुदूर देशों में भी प्रसिद्धि प्राप्त था। उसका ऐश्वर्य और वैभव किसी से छिपा नहीं था। जन-जन के मुख पर उसकी संपन्नता की चर्चा सुनी जा सकती थी। अनेक लोग उसकी ऋद्धि-सिद्धि और समृद्धि को देखने के लिए वहां आते थे। उसी नगर में एक सार्थवाह भी रहता था। उसका नाम था धन। उसके भद्रा नाम की पत्नी थी। उसका भरा-पूरा परिवार सभी प्रकार से सुखी था। उसके छह सन्तानें थीं। उनमें पांच पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्रों के नाम थे-धन, धनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरक्षित। पुत्री का
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