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उद्बोधक कथाएं
शर्त क्या होगी? विमल ने कहा।
सागरदत्त ने कहा-यदि मेरे कथन में सचाई हो तो तेरा धन मैं ले लूंगा, अन्यथा तुम मेरे धन को ले लेना। दोनों प्रस्तावित शर्त पर सहमत हो गए और साक्षीरूप में नगरसेठ कमल श्रेष्ठी को स्थापित कर दिया। सचाई को परखने के लिए तीनों रथ से नीचे उतरे और घोड़ों पर बैठकर द्रुतगति से वहां से चले और उस स्थान पर आ पहुंचे जहां गाड़ीवान् अपनी गाड़ी के साथ जा रहा था। गाड़ीवान् को देखने और पूछने पर प्रायः सभी बातें सत्य निकली, जो सागरदत्त ने अपने मुंह से कही थी, पर उसके द्वारा बताई हुई दो बातें असत्य लग रही थी। उसके साथ न तो कोई स्त्री थी और न कोई चाण्डाल ही था। इससे विमल श्रेष्ठी का मन ही मन प्रसन्न होना स्वाभाविक था। उसने सोचा-अब तो सागरदत्त का धन मेरा हो जायेगा। सागरदत्त ने गाड़ीवान् से पूछा-तुम्हारे साथ गाड़ी में जो स्त्री बैठी थी वह कहां है और चाण्डाल कहां गया? गाड़ीवान् ने कहा-स्त्री गर्भवती थी, इसलिए वह निकट वन में प्रसव करने गई है। इसी नगर में उसका पीहर है, इसलिए वह चाण्डाल उसकी मां को लेने गया है। अभी सागरदत्त गाड़ीवान् से बात कर ही रहा था कि चाण्डाल उस स्त्री की मां को लेकर आ गया। उसकी मां वन में गई, किन्तु उसके जाने से पहले ही उसके पुत्र हो गया।
अब सब बातें सत्य जानकर विमल श्रेष्ठी का दिल धड़कने लगा। वह अपनी शर्त में हार चुका था। उसने सोचा-मेरे पिताश्री इन सारी घटनाओं में साक्ष्यरूप में मध्यस्थ है। वे झूठ तो नहीं बोलेंगे। यदि वे इस शर्त को हंसी-मजाक मानकर अपना निर्णय दे दें तो मैं बच सकता हूं, अन्यथा मेरा धन-माल सागरदत्त के हाथ में चला जाएगा। मैं लुट जाऊंगा। विमल श्रेष्ठी ने अपने पिताश्री से कहा-अब मुझे बचाना आपके हाथ में है। आप सागरदत्त से इतना ही कह दें कि यह तो सब हंसीमजाक की शर्त थी, यथार्थ में कुछ नहीं था।
यह सत्य है कि विश्वास भी सत्य के आधार पर चलता है, इसलिए मध्यस्थ का कार्य पक्षपातरहित होकर न्याय देने का होता है। एक ओर कमल श्रेष्ठी के सामने अपने पुत्र के घर को बर्बादी से बचाने का प्रश्न था तो दूसरी ओर सत्य पर अडिग रहने का। अन्ततः कमल श्रेष्ठी ने सत्य का पक्ष लेते हुए कहा-वत्स! तू शर्त में हार गया है। अपनी हार को स्वीकार करना ही महानता है। इसलिए अच्छा है कि तू अपना सारा धन For Private & Personal Use Only
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