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सिन्दूरप्रकर
उसका पुत्र विमल और सागरदत्त दोनों साथ-साथ आ रहे हैं। पिता कमल उनकी अगवानी करने के लिए वहां से रवाना हुआ और विजयपुर से दस कोस की दूरी पर तीनों का मिलना हो गया । पुत्र पिता के गले मिला। पिता ने पुत्र को अपनी छाती से लगा दिया। सागरदत्त ने भी कमल श्रेष्ठी के चरणकमलों को छुआ। उसने उसे भी पुत्र की भांति अपनी बाहों में भर लिया। तीनों एक दिन मार्ग में रुके। दूसरे दिन तीनों ने आगे के लिए प्रस्थान कर दिया।
तीनों आपस में बातें करते हुए रास्ता तय कर रहे थे। बात ही बात में सागरदत्त ने विमल श्रेष्ठी से कहा - मित्र! सभी लोग देखी हुई बातें तो बताते हैं। तुम चाहो तो मैं अनदेखी बात भी बता सकता हूं। विमल ने कहा- वह कैसे ? तुम कोई प्रत्यक्षद्रष्टा थोड़े ही हो । सागरदत्त ने कहायदि तुम्हें विश्वास न हो तो इसका प्रयोग करके देख लो। विमल ने तत्काल कह दिया- बोलो, तुम क्या बताते हो ? सागरदत्त ने कहादेखो, हमारे से आगे कुछ ही दूरी पर आम से भरी हुई एक गाड़ी जा रही है। गाड़ी न तो मुझे दीख रही है और न तुम्हें दीख रही है। फिर भी मैं कहता हूं कि गाड़ी आगे जा रही है और उसमें आम भरे हुए हैं। उस गाड़ी को हांकने वाला एक ब्राह्मण है । वह कोढ के रोग से ग्रस्त है। उस गाड़ी में दांई ओर दुष्ट बैल जुता हुआ है और बांई ओर लंगड़ा बैल है। गाड़ी के पीछे-पीछे कुछ दूरी पर एक चाण्डाल चल रहा है। उसके साथ एक स्त्री भी है। वह गर्भवती है। उसके गर्भ में लड़का है। उस स्त्री के शरीर में कुंकुम लगा हुआ है। उसके गले में बकुल के पुष्पों की माला है। उसकी साड़ी लाल है और वह गाड़ी पर सवार है।
विमल श्रेष्ठी ने सागरदत्त पर व्यंग्य कसते हुए कहा - गप्पे हांकने में क्या लगता है? हर कोई ऐसा कर सकता है। मुझे तो लगता है कि तुम भी व्यर्थ की गप्पें हांक रहे हो ।
यदि तुम्हें विश्वास न हो तो तुम अपना घोड़ा दौड़ाओ, देखने पर पता लग जायेगा कि मैंने सत्य कहा है या असत्य, सागरदत्त ने अपनी बात को पुष्ट करते हुए कहा ।
पुनः विमल ने कहा- मैं तुम्हारी बातों में आने वाला नहीं हूं। तुम ही जाकर देख लो कि तुम्हारे कथन में कितनी सचाई है ?
हां, मैं तब जाकर देख सकता हूं यदि तुम मेरे से कोई शर्त लगाओ, सागर ने कहा।
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