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उद्बोधक कथाएं
२७१ से प्रस्थान करने की अनुमति दे दी।
पुत्र पिता की आज्ञा से अनेक गाड़ियों में माल भरकर सोपारक देश की सीमा में स्थित मलयपुर की ओर रवाना हुआ। मध्यमार्ग में स्थानस्थान पर डेरा डालता हुआ वह कुछ दिनों के बाद गन्तव्यस्थल पर पहुंच गया। मलयपुर में उसने अपना माल बेचा और वहां से माल खरीदकर उसे गाड़ियों में भरकर कुछ दिनों के अन्तराल से पुनः वह अपने देश के लिए रवाना हुआ। कुछ दूर चलने पर रास्ते में वर्षा होने के कारण मार्ग अवरुद्ध हो गया था, इसलिए उसे वन में ही प्रवास करना पड़ा।
विजयपुर में सागरदत्त नाम का भी एक युवा श्रेष्ठी रहता था। वह भी व्यापार हेतु समुद्र के पार गया हुआ था। जब वह अपने जहाजों में माल भरकर लौट रहा था तो उसने अपने नौकरों को आदेश दिया कि तुम गाड़ियों में माल भरकर स्थलमार्ग से आ जाना। मैं आगे पड़ाव डालकर तुम सब लोगों की प्रतीक्षा करूंगा। सागरदत्त रथ में बैठकर विजयपुर की ओर प्रस्थित हो गया। अचानक मार्ग में उसका विमल श्रेष्ठी से मिलन हो गया। विमल ने सागरदत्त से कहा-अच्छा संयोग मिला कि तुम यहां आ गए। अब हम दोनों साथ-साथ ही विजयपुर चलेंगे। सागरदत्त ने भी अपने भाग्य की सराहना करते हुए कहा-अच्छा हुआ कि हम एक से दो हो गए, किन्तु मुझे तब तक यहीं ठहरना होगा जब तक मेरे कर्मचारी सागरतट से माल लेकर यहां नहीं पहुंच जाते। हम कुछ दिन यहां ठहर जाते हैं, फिर दोनों साथ-साथ अपने नगर चलेंगे। यह कहकर सागरदत्त ने भी उसी वन में अपना पड़ाव डाल दिया। ____ कुछ दिनों के बाद माल के लदान के साथ गाड़ियां वहां पहुंच गईं। अगले दिन विमल श्रेष्ठी और सागरदत्त ने सार्थ के साथ वहां से प्रस्थान कर दिया। कुछ दूर जाने पर विमल के मन में पाप उभरा। उसने सोचा कि हम दोनों साथ-साथ जा रहे हैं। लोग पूछेगे कि कौन ज्यादा कमाकर लाया है? मेरे पास इसका क्या उत्तर होगा? सागरदत्त के सामने मेरी कमाई तो बहुत नगण्य है। इसलिए मैं किसी न किसी उपाय से इसके धन को हड़पने का प्रयत्न करूं। जिससे मुझे भी उत्तर देने में कोई कठिनाई न हो। उसने धन लेने के लिए अनेक चालें चली, पर वह अपने उपायों में सफल नहीं हो सका। बहुत उपाय करने पर भी वह केवल सागरदत्त की सहस्र मुद्राएं ही चुरा सका। उधर विजयनगर में कमल श्रेष्ठी को पथिकों द्वारा सूचना मिली कि For Private & Personal Use Only
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