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________________ उद्बोधक कथाएं २६५ मुझे पराई पीड़ा का भी अनुभव हो सके। ऐसा कहते हुए उसने तलवार को ऊपर उठाया और अपने पैर पर चलाने लगा। यह क्या कर रहे हो, ऐसा कहते हुए बुजुर्ग व्यक्ति ने बीच में ही लपककर उसके हाथ को पकड़ लिया। सुलस के इस कार्य से सभी परिवार वाले स्तब्ध रह गए। वे सभी मौन होकर खड़े थे। उनमें से किसी में ऐसी हिम्मत नहीं थी कि कोई पुनः उसे समझा-बुझाकर भैंसे पर तलवार चलवा सके। घर के सभी सदस्य उसकी अहिंसक - चेतना, करुणा की चेतना के सामने नत थे । अन्त समय तक सुलस अपने दृढ़निश्चय पर अडिग रहा। उसने अहिंसा के द्वारा हिंसा को पराजित कर लिया। अन्त में परिवार वालों ने उसके स्वर में अपना स्वर मिलाते हुए कहा- वत्स ! तुम्हें जैसा इष्ट हो हम वैसा ही कार्य करेंगे। तुम्हारी मर्जी के बगैर जबरदस्ती तुमसे कोई कार्य नहीं कराएंगे। अब तुम जैसा कहो हम वैसा करें। सुलस ने सबके सामने अपनी भावना को प्रकट करते हुए कहा- यदि यह विधि अहिंसात्मक तरीके से संपन्न होती है तो मुझे प्रमुखपद का दायित्व मान्य है, अन्यथा इसे मैं स्वीकार नहीं करूंगा। परिवार वालों ने उसकी बात मानकर बिना किसी शर्त, बिना किसी परम्परा तथा बिना किसी हिंसा के सुलस के भाल पर प्रमुखपद के दायित्व का तिलक लगाकर उसे प्रमुखपद पर मनोनीत कर दिया। ९. प्रसन्नचन्द्र राजर्षि : मानसिक हिंसा का परिणाम राजगृह नगर की पुण्यस्थली । भगवान महावीर का समवसरण । प्रभु दर्शन की उत्कंठा । महाराज श्रेणिक की जय हो, राजगृह के सम्राट् की जय हो - लोगों के जयनाद से निनदित होते हुए महाराज श्रेणिक अपने राजपरिवार के साथ भगवान के दर्शनों के लिए जा रहे थे। उनके मानस में प्रभुभक्ति का अतिरेक, नयनों में दर्शन की ललक और भावों में पवित्रता झलक रही थी । राजपथ के दोनों ओर खड़े दर्शक उनकी वर्धापना कर रहे थे। राजा श्रेणिक सबकी वर्धापना को स्वीकार करते हुए अपने कारवें के साथ आगे बढ़ रहे थे । राजगृह का उद्यान जनाकीर्ण होता हुआ एक आकर्षण का बिन्दु बना हुआ था। भगवान महावीर के पादन्यास से उसकी सुषमा और अधिक बढ़ गई थी। राजपथ के एक छोर पर खड़े एक महामुनि ध्यान में तल्लीन बने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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