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________________ २५४ सिन्दूरप्रकर बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो? राजन् ! आप जानते ही हैं कि नगर के बाहर सम्राट का एक विशाल उद्यान है। महाराजश्री ! आप स्वयं कई बार वहां घूमने के लिए आते हैं। वह उद्यान अत्यन्त रमणीय और मन को अत्यधिक आकृष्ट करने वाला है। उसमें विविध फल देने वाले नाना प्रकार के वृक्ष हैं। वहां कुछ वृक्ष आम के भी हैं। वे बारह महीने ही फल देते हैं। इन दिनों वे दुर्लभ आम उद्यान से चुराए जा रहे हैं। कौन व्यक्ति वहां आता है, कहां से आता है, वह आमों को कैसे चुराता है, कुछ ज्ञात नहीं है। क्योंकि उद्यान के चारों ओर सुरक्षा का घेरा है, चौबीस घंटे का कड़ा पहरा है। किसी के भीतर आने का भी कोई प्रश्न नहीं उठता, फिर भी आमों का चराया जाना एक रहस्यमय पहेली बना हुआ है। यदि समय से पहले इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो संभवतः सारा बाग उजड़ जायेगा। तत्काल राजा ने अमात्य अभयकुमार की ओर अभिमुख होकर निर्देश देते हुए कहा-कुमार! अब इस समस्या को सुलझाना तुम्हारा दायित्व है। तुम शीघ्रातिशीघ्र सारी स्थिति का आकलन करो, जांचपड़ताल करो कि उद्यान से आम गायब क्यों हो रहे हैं? अभयकुमार बहुत बुद्धिमान् था। उसने दूसरे ही दिन अपनी बुद्धिमत्ता का जाल चारों ओर फैला दिया। वह बड़ी सजगता से सारी स्थिति का निरीक्षण करने लगा, बाग में होने वाली प्रत्येक हलचल को निरन्तर पढ़ने लगा। अन्ततः उसे आम तोड़ने वाले व्यक्ति का पता लग गया। वह आरक्षी पुरुषों के द्वारा पकड़ा गया। वह चोरी करने वाला व्यक्ति थाहरिकेश चांडाल। ___चांडाल को राजा के सामने प्रस्तुत किया गया। राजा ने भृकुटी तानते हुए पूछा-क्या तुमने आम चुराए हैं? नहीं, महाराज! मैंने नहीं चुराए? __ एक ओर चोरी का अपराध और फिर झूठ, राजा ने उसे दुत्कारते हुए कहा। तो फिर तुमने क्या किया? राजन् ! मैंने तो आम तोड़े थे, चुराए नहीं। क्या भीतर जाकर? नहीं, मैं तो भीतर गया ही नहीं। तो फिर कहां से तोड़े? मैंने बाहर खड़े-खड़े ही आम तोड़े थे। Jain Education Thternationar 5-5 51 मनाड थle Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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