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उद्बोधक कथाएं
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पूर्व कभी नहीं देखा था। वह कुछ क्षणों तक अपलक नेत्रों से उस मनोहारी दृश्य को देखता रहा । फिर उसने सोचा- काश ! कितना अच्छा होता कि मेरा सारा परिवार भी इस सुन्दर दृश्य को देख पाता। यह सोचकर वह अपने स्वजनों को बुलाने के लिए पानी में चला गया। इतने में ही वायु का एक झोंका आया । पुनः छिद्र पर शैवाल का आवरण आ गया। जब वह परिवारसहित वहां आया तो उसे वह छिद्र नहीं मिला। वह छिद्र शैवाल से आच्छन्न हो चुका था। सभी सदस्य उस मनोहारी दृश्य को देखने से वंचित रह गए।
जिस प्रकार छिद्र का पुनः मिलना दुर्लभ है वैसे ही खोए हुए मनुष्य - जन्म का भी पुनः मिलना दुर्लभ है।
९. युग (जुआ)
एक अथाह समुद्र है। उसके पूर्वभाग में युग- जुआ है और पश्चिमभाग में समिला - उसकी कील है। युग के छिद्र में कील का प्रविष्ट होना जैसे दुर्लभ है वैसे ही मनुष्यजन्म का मिलना भी दुर्लभ है। यदि कदाचित् कील प्रचण्डवायु की लहरों से प्रेरित होकर सागर में बहते - बहते जुए के छिद्र में प्रविष्ट हो भी जाए तो भी मनुष्यजन्म खोने के पश्चात् पुनः उसका मिलना अतिदुर्लभ है।
१०. परमाणु
एक विशाल स्तम्भ है । एक देव ने उस स्तम्भ को चूर-चूर कर उसका अत्यन्त सूक्ष्म चूर्ण बना दिया। फिर वह उसे एक नलिका में डालकर उसे मंदराचल पर्वत पर ले गया। वहां उसने पर्वत-शिखर से नलिका में फूंक मारकर सारे चूर्ण को नीचे गिरा दिया। क्या कोई व्यक्ति उन बिखरे हुए परमाणुओं को एकत्रित कर पुनः स्तंभ का निर्माण कर सकता है ? जैसे उस स्तंभ का निर्माण करना अत्यन्त दुष्कर है वैसे ही मनुष्यजन्म का पुनः मिलना भी अतिदुष्कर है।
४. मनुष्यजन्म : चिन्तामणि रत्न
प्रातःकाल का सुहावना मौसम | गर्मी का दिन। ठंडा-ठंडा बहता पवन । एक दरिद्र व्यक्ति नदी के किनारे घूम रहा था। वह नदी न तो पूर्णतः पानी से पूरित थी और न पूर्णतः सूखी । उसकी चर में कहीं पानी
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