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________________ २५० सिन्दूरप्रकर ने भी अपने-अपने भाग्य को अजमाया। उनमें से किसी-किसी पुत्र के बाणों ने दो चक्रों का भेदन किया । अन्यान्य पुत्रों के बाण तो चक्र से बाहर ही निकल गए। इस प्रकार बाईस ही पुत्र पुतली की आंख को बींधने में असफल रहे। यह देखकर राजा ने दुःख और लज्जा का अनुभव किया, पर क्या किया जा सकता था ? अन्त में अमात्य ने सुरेन्द्रदत्त की ओर संकेत करते हुए राजा से कहा - महाराजन् ! आप यह न समझें कि यह पृथ्वी शूरवीरों से विहीन हो गई है। आप इस राजकुमार को भी आज्ञा दें। यह निश्चित ही आठ चक्रों का भेदन कर पुतली की आंख को भी बींध सकेगा। राजा की आज्ञा पाकर राजकुमार सुरेन्द्रदत्त यथास्थान स्थित हो गया। उसने धनुष्य को ग्रहण किया। उसके दोनों ओर दो व्यक्ति नंगी तलवार लेकर खड़े थे और वे बार-बार सूचना दे रहे थे कि लक्ष्य चूक जाने पर उसका सिर काट दिया जाएगा। पास में ही कलाचार्य भी खड़े थे। वे भी बार-बार अपने शिष्य को लक्ष्य भ्रष्ट नहीं होने की चेतावनी दे रहे थे। वे बाईस राजकुमार भी लक्ष्य में विघ्न डालने का प्रयत्न कर रहे थे। पर राजकुमार बड़ा ही सजग था। उसने सब बाधाओं को पार कर दत्तचित्त होकर पुतली की बाईं आंख को बाण से बींध डाला। लोगों ने जय-जयकार कर हर्षनाद किया। उसका निर्वृत्ति के साथ पाणिग्रहण हो गया और साथ-साथ राजा के द्वारा दिया गया उपहारस्वरूप राज्य भी उसे मिल गया। शेष राजकुमार पराजित होकर अपने-अपने देश चले गए। जिस प्रकार चक्र को भेदकर पुतली की आंख को बींधना दुर्लभ है वैसे ही चौरासी लाख जीवयोनियों को भेदकर मनुष्यजन्म पाना भी दुर्लभ है। ८. चर्म एक तालाब था। वह अतिविशाल और पानी से सदा लबालब भरा रहता था। पूरे तालाब पर शैवाल छाई हुई थी। एक कछुआ उसमें रहता था। एक बार उसने पानी में तैरते तैरते एक स्थान पर शैवाल में छिद्र देखा। उसने छिद्र में से अपनी ग्रीवा निकालकर ऊपर की ओर देखा । निरभ्र आकाश में चांद चमक रहा था। दीप्तिमान् तारे आकाश में टिमटिमा रहे थे। चांदनी की ज्योत्स्ना पृथ्वी पर फैली हुई थी। उसके प्रकाश में पेड़-पौधे दिखाई दे रहे थे। उसने ऐसा मनभावन दृश्य उससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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