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सिन्दूरप्रकर
के पास पहुंचा और अपने स्वप्न की बात कही। स्वप्नपाठक ने कहा-तुम राजा बनोगे। ___ उधर सातवें दिन नगर का राजा मर गया। उसके कोई पुत्र नहीं था। मंत्री ने राजा का चुनाव करने के लिए एक अश्व को सज्जित कर, उसकी पूजा कर नगर में छोड़ दिया। वह शोकाकुल कार्पटिक बगीचे में एक वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था। अचानक घोड़ा उसी के पास आकर रुका। वह हिनहिनाया और उसकी प्रदक्षिणा की। पीछे आने वाले राजपुरुषों ने यह देखा। लोगों ने उसकी जय-जयकार की और कहाआज से आप हमारे स्वामी हैं। वे उसे घोड़े पर बिठाकर राजसभा में ले गए। उसे राजपद से अलंकृत कर दिया गया।
राजा बनने की बात रोटी पाने वाले कार्पटिक ने भी सुनी। उसने सोचा-मैंने भी तो ऐसा ही स्वप्न देखा था। स्वप्नपाठक के कथनानुसार वह राजा बन गया और मुझे रोटी ही नसीब हई। अब मैं वहां जाऊं जहां गोरस मिलता हो। यदि मैं गोरस का पान कर शयन करूंगा तो संभवतः मझे भी वैसा ही स्वप्न आ जाएगा। यह सोचकर वह दूध पीकर सो गया। सारी रात व्यतीत हो गई, किन्तु वह वैसा स्वप्न नहीं देख सका। ___जैसे पुनः उस स्वप्न को देखना दुर्लभ है वैसे ही एक बार मनुष्यजन्म खोकर पुनः उसे पाना दुर्लभ है। ७. चक्र
एक नगर था। उसका नाम था इन्द्रपुर। वहां का राजा इन्द्रदत्त था। उसके बाईस पुत्र थे। वे सभी राजा को प्राणों से प्यारे थे। मंत्री की एक पुत्री भी राजा की रानी थी। राजा ने विवाह के समय ही उसे देखा था। एक दिन वह राजा के पास ही खड़ी थी। राजा ने अपने सेवकों से पूछायह कौन है? सेवकों ने कहा-राजन् । यह आपकी पत्नी है। उस समय वह ऋतुस्नाता थी। राजा ने एक रात उसके साथ बिताई। वह गर्भवती हुई। उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम सुरेन्द्रदत्त रखा गया। राजा के बाईस पुत्र और सुरेन्द्रदत्त कलाचार्य के पास विद्याध्ययन करने लगे। सुरेन्द्रदत्त विनय, गुरु को बहुमान देने वाला तथा एकाग्रचित्त आदि गुणों से संपन्न था। उन गुणों के कारण उसने गुरु से लेखादिक गणितप्रधान विद्याओं का अर्जन कर लिया। अन्य बाईस पुत्र अपनी उद्दण्डता और अविनय के कारण उन विद्याओं को नहीं ले सके।
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