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उद्बोधक कथाएं
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पहले प्राप्त करना चाहता है तो उसे जुआ खेलना होता है। जो जुए में जीत जाता है उसे राज्य मिल जाता है। राजकुमार ने पूछा- जुआ किस प्रकार जीता जा सकता है? तब राजा ने कहा- एक दांव तुम्हारा होगा शेष दांव हमारे होंगे। यदि तुम एक दांव से एक सौ आठ स्तम्भों के एकएक कोने को एक सौ आठ बार जीत लोगे तो तुम्हें यह राज्य सौंप दिया
जाएगा।
जैसे उस राज्य को प्राप्त करना दुर्लभ है वैसे ही मनुष्यजन्म पाना भी दुर्लभ है।
५. रत्न
एक नगर में एक वृद्ध वणिक् रहता था। उसके पास अनेक रत्न थे। उसी नगर में अन्य वणिक् भी रहते थे । वे कोटिपति थे । वे उत्सव के समय अपने-अपने घर पर ध्वजा फहराते थे । किन्तु उस वृद्ध वणिक् ने कोटिपति होते हुए भी अपने घर पर ध्वजा नहीं फहराई ।
एक बार वृद्ध किसी कार्यवश परदेश चला गया। पीछे से पुत्रों ने सारे रत्न व्यापारियों को बेच दिए। उन व्यापारियों ने सोचा- हम भी दूसरे दूसरे वणिकों की तरह अपने-अपने घर पर ध्वजा फहरायेंगे । वृद्ध पिता परदेश से लौटा। उसने रत्नों को बेचने की बात सुनी। उसने पुत्रों को उलाहना दिया और बेचे हुए रत्नों को वापिस लाने को कहा । पुत्र इधर-उधर गए । रत्नों को लाने का प्रयास भी किया, पर वे अपने कार्य में सफल नहीं हो सके। क्योंकि व्यापारी उन रत्नों को खरीदकर सुदूर देशों में प्रस्थान कर चुके थे। वहां तक पुत्रों का पहुंचना और वहां से पुनः रत्नों का इकट्ठा करना संभव नहीं था।
जिस प्रकार रत्नों का पुनः मिलना दुर्लभ है वैसे ही मनुष्यजन्म का का पुनः प्राप्त होना भी दुर्लभ है।
६. स्वप्न
एक कार्पटिक ने रात्रि में स्वप्न देखा कि उसने पूर्ण चन्द्रमा को निगल लिया है। उसने अपने स्वप्न की बात अन्य कार्पटिकों से कही। प्रत्युत्तर में उनके साथियों ने कहा - इस स्वप्न के आधार पर लगता है कि तुम्हें सम्पूर्ण चन्द्रमंडल के समान रोटी मिलेगी। वह उसे मिल गई । दूसरे कार्यटिक ने भी वैसा ही स्वप्न देखा। वह उसका फल जानने के लिए स्नानादि से निवृत्त होकर तथा हाथ में पुष्प फलादि लेकर स्वप्न- पाठक
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