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सिन्दूरप्रकर
कालान्तर में उसने छोटे-छोटे गांवों को जीतकर पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया और नन्दवंश को उखाड़कर चन्द्रगुप्त को उसका राज्य सौंप दिया। वह स्वयं उसका मंत्री बन गया ।
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एक बार राजकोष में धन की कमी हो गई । चाणक्य ने युक्ति के द्वारा स्वर्ण अर्जित करना चाहा। उसने जुए का एक प्रकार निकाला और यंत्रमय पाशकों का निर्माण किया। उसने एक शिक्षित और दक्ष पुरुष को स्वर्णदीनारों से भरा थाल सौंपकर कहा- तुम सारे नगर में यह घोषणा करा दो कि जो मुझे इस जुए में जीतेगा उसे मैं स्वर्णदीनारों से भरा यह थाल दे दूंगा। यदि वह मुझे नहीं जीत सका तो उसे एक दीनार देनी होगी। अनेक लोगों ने अपने भाग्य को अजमाया, पर यंत्रमय पाशक होने के कारण कोई उसे जीत नहीं सका। क्योंकि उसकी इच्छा के अनुसार ही पाशे पड़ते थे। इस प्रकार उसने अनेक स्वर्णदीनारों को अर्जित कर लिया।
जिस प्रकार हारी हुई स्वर्णदीनारों को प्राप्त करना दुष्कर है वैसे ही मनुष्यजन्म को खोकर पुनः उसे प्राप्त करना दुर्लभ है।
३. धान्य
किसी व्यक्ति ने विविध प्रकार के धान्यों का मिश्रण कर ढेर लगा दिया । फिर उसमें एक प्रस्थ सरसों के दाने मिला दिए । वे दाने इस प्रकार मिलाए गए कि कोई एक दाना भी न देख सके । एक वृद्धा उस ढेर में से उन सरसों के दानों को बीनने बैठी। पर वह उन दानों को उससे अलग नहीं कर सकी।
जिस प्रकार धान्य के ढेर में से सरसों के दानों को अलग करना दुष्कर है वैसे ही मनुष्यजन्म को पुनः प्राप्त करना दुष्कर है।
४. द्यूत
एक राजा था। उसकी राजसभा का मंडप एक सौ आठ स्तम्भों पर आधारित था। एक-एक स्तम्भ में एक सौ आठ कोने थे। राजकुमार का मन राज्यलिप्सा में आसक्त हो गया। उसने सोचा- राजा वृद्ध हैं, अतः राजा को मारकर मुझे राज्य पर अधिकार कर लेना चाहिए। अमात्यको इस रहस्य का पता लग गया। उसने राजा को सारी घटना से अवगत करा दिया। राजा ने पुत्र को 'बुलाकर कहा - वत्स! अपने वंश की परम्परा है कि जो राज्यप्राप्ति के अनुक्रम को सहन नहीं करता अर्थात् राज्य को
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