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________________ अवबोध-२६ २२७ अनुप्रेक्षा भी उन संस्कारों को पुष्ट कर सकती है। ___— जब जीवन में वैराग्य का उदय होता है तब फलित होता है सुख। इसलिए नीतिकार ने कहा- 'कस्य सुखं न करोति विरागः' -वैराग्य किसको सुख नहीं देता? संसार में वीतरागता ही सुख है। हितोपदेश में वैराग्य से प्राप्त लाभ की चर्चा करते हुए बताया गया 'वनेऽपि दोषाः प्रभवन्ति रागिणां, गृहेऽपि पञ्चेन्द्रियनिग्रहस्तपः। अकुत्सिते कर्मणि यः प्रवर्तते, निवृत्तरागस्य गृहं तपोवनम्।।' रागीजन वन में रहते हुए भी दोषमुक्त नहीं रह सकते और वैरागियों को घर में भी पांच इन्द्रियों के निग्रहस्वरूप तप की प्राप्ति हो जाती है। जो अकुत्सित प्रवृत्ति (अपापकारी प्रवृत्ति) में लगे रहते हैं उन रागरहित व्यक्तियों के लिए घर भी तपोवन है। इसलिए वैराग्य और वितृष्णा-भौतिक पदार्थों के प्रति अनासक्तिये दोनों मुक्ति-प्राप्ति के आदि साधन हैं। श्रीमद्भागवत माहात्म्य में जीव को वैराग्यरसिक बनने की प्रेरणा देते हुए कहा गया'देहेऽस्थिमांसरुधिरेऽभिमतिस्त्यज त्वं, जायासुतादिषु सदा ममतां विमुञ्च। पश्यानिशं जगदिदं क्षणभङ्गनष्टम्, वैराग्यरागरसिको भव भक्तिनिष्ठ!।।' प्रभुभक्ति में निष्ठा रखने वाले हे जीव ! तू इस हाड़, मांस और रुधिर वाले शरीर का अभिमान छोड़, स्त्रीपुत्रादिक की ममता को सदा दूर कर, क्षणभर में विनष्ट होने वाले इस जगत् को सदा देख और वैराग्यराग का रसिक बन। प्रस्तुत प्रकरण के नवनीत को इन बिन्दुओं में देखा जा सकता है• वैराग्य अध्यात्म का प्रवेशद्वार है। • देवों को किया जाने वाला नमस्कार, सद्गुरु-चरणसेवा आदि उपक्रम तभी मोक्ष देने वाले हैं जब वैराग्य की स्फुरणा उनके साथ होती है। • मनुष्यजन्मरूपी वृक्ष का एक रसिक फल वैराग्य भी है। • वैराग्य प्राणी को संसार के भय से मुक्त कर सकता है। अकेला वैराग्य समस्त कर्मों का भी निर्जरण कर सकता है। • वैराग्य मनुष्य को शाश्वत सुख देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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