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________________ २२६ सिन्दूरप्रकर सूत्र में विरक्त साधक को मिट्टी के सूखे गोले की उपमा से उपमित करते हुए कहा गया-'विरत्ता उ न लग्गति जहा सक्को उ गोलओ'-मिट्टी के सूखे गोले के समान विरक्त साधक कहीं भी नहीं चिपकता, आसक्त नहीं होता। अनासक्ति कर्ममुक्ति का बहुत बड़ा हेतु है। अनासक्तभाव से किया हुआ प्रत्येक कार्य कर्मनिर्जरा में निमित्त बनता है। औपपातिकसूत्र में कहा गया- 'वेरग्गमुवगया कम्मसमुग्गं विहाडेंति'-वैराग्य को प्राप्त कर जीव कर्मों के समूह को तोड़ देते हैं। विरक्ति के दो हेतु हो सकते हैं-अतिभोग से अतृप्ति और भोगों के विपरिणाम की अनुभूति। आत्मानुशासन में इसी आशय को स्पष्ट करते हुए कहा गया 'विरज्य संपदः सन्तस्त्यजन्ति किमिहाद्भुतम् । नावमीत् किं जुगुप्सावान् सुभुक्तमपि भोजनम्।।' जुगुप्सावान्-अजीर्ण रोग से ग्रस्त होने पर क्या व्यक्ति सुभुक्त भोजन का भी वमन नहीं करता, फिर संपदाओं से विरक्त होकर सन्तजन यदि उनको छोड़ते हैं तो इसमें आश्चर्य ही क्या? । पदार्थ के प्रति विरक्त होना अथवा प्राप्त भोगों को पीठ दिखाना वास्तव में सुभुक्त भोजन का ही वमन करना है। यही अनुराग से विराग की यात्रा है, संसार से अध्यात्म की ओर अभिमुखता है। जीवन में सदा वैराग्य की महक बनी रहे, ऐसा चाहते हुए भी व्यक्ति प्रायः भोगों में डूबा रहता है। वह वैराग्य की ओर नहीं बढ़ पाता। उसका लगाव भौतिकता की ओर होता है। वैराग्य के संस्कारों को जीवन में लाने के लिए क्या करना चाहिए? यह जिज्ञासा प्रत्येक व्यक्ति की बनी रहती है। इसी जिज्ञासा के समाधान में आचार्य उमास्वाति ने लिखा 'वृत्त्यर्थं कर्म यथा तदेव लोकः पुनः पुनः कुरुते। एवं विरागवातहितुरपि पुनः पुनश्चिन्त्यः।।' जिस कार्य से आजीविका चलती है, उस कार्य को लोग बार-बार करते हैं। उसी प्रकार वैराग्य वार्ता के हेतुओं का चिन्तन भी बार-बार करते रहना चाहिए। ___वैराग्य के संस्कार वैरागीजन के निकट बैठने से, वैराग्यपरक बातों के श्रवण से, वैराग्य के योग्य बिन्दुओं का सतत चिन्तन करने से तथा वैराग्यपूरक साहित्य को बार-बार पढ़ने से पुष्ट होते हैं। वैराग्य की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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