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सिन्दूरप्रकर तथा शत्रु का मित्रबुद्धि से चिन्तन करने पर वह मित्ररूप में परिणत हो जाता है।
यह प्रतिपक्ष की भावना नई आदतों तथा नए विचारों के निर्माण की प्रक्रिया है एवं प्रतिकूलता से अनुकूलता की स्थिति निर्मित करने का उपाय है। भगवान महावीर ने प्रतिपक्ष भावना से होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए कहा
'उवसमेण हणे कोहं माणं मद्दवया जिणे।
मायं चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिणे।।' उपशम की भावना से क्रोध, मृदुता की भावना से अभिमान, ऋजुता की भावना से माया तथा संतोष की भावना से लोभ को जीता जा सकता
प्रश्न होता है कि एक ही बात को पुनः पुनः दोहराने का प्रयोजन क्या? यह स्पष्ट है कि उसके बिना पुराने संस्कारों तथा पुरानी धारणाओं की धुलाई नहीं होती। यदि एक झूठ भी हजार बार दोहराने से सच हो सकता है तो एक सच हजार-लाख बार दोहराने पर फलित क्यों नहीं होगा? यह आवृत्ति, पुनरावृत्ति का सिद्धान्त विज्ञानसम्मत फ्रीक्वेन्सी (Frequency) का सिद्धान्त है। प्रत्येक शब्द की अपनी एक निश्चित फ्रीक्वेन्सी होती है। शब्द को दोहराते-दोहराते आत्मा की एकाग्रता जब उस फ्रीक्वेन्सी पर केन्द्रित होती है तब वह शब्द अपने आप सिद्ध हो जाता
प्रत्येक व्यक्ति का अपना भिन्न-भिन्न ध्येय होता है। कोई व्यक्ति लेखक बनना चाहता है तो कोई दार्शनिक, कोई साहित्यकार तो कोई वक्ता तो कोई महान् साधक। सर्वप्रथम अपने इष्ट ध्येय का चुनाव करें। उसकी क्रियान्विति के लिए भावना का प्रयोग अपने आपको भावित करने का प्रयोग है। सर्वप्रथम कायोत्सर्ग कर पांच-दस दीर्घश्वास लें। तत्पश्चात् उस चिन्तन से अपने मन को भावित करें जो आप बनना चाहते हैं। उसमें आप इतने अधिक तन्मय और एकाकार हो जाएं जहां ध्याता और ध्येय की दूरी न रहे। आपकी अभीष्ट भावना स्थूल मन को पारकर अवचेतन मन की सतह में पहुंच जाए। दृढ़संकल्प से किया हुआ आपका प्रतिदिन का यह अभ्यास निश्चित ही सफलता की मंजिल देगा। यह है भावनायोग का चमत्कार और स्वयं के परिवर्तन का उपाय।
भावना प्रशस्त और अप्रशस्त दो प्रकार की हैं। बृहत्कल्पभाष्य के
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