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भावना प्रकरण
२५. अवबोध
आज का युग वैज्ञानिक युग है, शिक्षण-प्रशिक्षण तथा शोधअनुसंधान का युग है। इस युग की सबसे बड़ी विशेषता है - असंभाव्यता में संभाव्यता को खोजना, असंभव को संभव बनाना । आज के विज्ञान ने नए-नए अनुसंधानों के आधार पर परिवर्तन की दिशा में नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। उसने जीन्स- हारमोन्स को बदला है, अंगों का प्रत्यारोपण किया है तथा प्राणियों के क्लोन आदि बनाए हैं। अब उसके विविध प्रयोग पशु-पक्षियों के स्वभाव और व्यवहार को बदलने में भी सिद्ध हो रहे हैं। उसी का परिणाम है कि सम्यक् प्रशिक्षण के द्वारा एक कुत्ते को अनेक विधाओं में प्रशिक्षित किया जा सकता है, एक तोते को 'स्वागतम् स्वागतम्' का पाठ सिखाया जा सकता है, सर्कस में विविध करतब दिखाने के लिए शेर, भालू, चीते आदि हिंस्र पशुओं को भी प्रशिक्षित किया जा सकता है और चूहे तथा बिल्ली के सिर पर इलेक्ट्रोड लगाकर कुछ समय के लिए उन दोनों के जन्मजात वैर का शमन किया जा सकता है। यह स्वभाव और व्यवहार का परिवर्तन कैसे हुआ ? यदि वह प्रयोग के द्वारा संभव है तो क्यों नहीं मनुष्यों की आदतों और व्यवहार में परिवर्तन किया जा सकता ? विज्ञान के लिए ऐसा करना कोई अस्वाभाविक और असंभावित भी नहीं लगता। उसके आधार पर आदमी के व्यवहार और आदतों में भी परिवर्तन हो सकता है।
आज की खोजों के आधार पर शरीर की विद्युत् मनुष्य के सारे व्यवहार को संचालित करती है। मनुष्य की प्राण विद्युत् और जैविक विद्युत् आचार-व्यवहार को नियन्त्रित करती है। यदि विद्युत् धारा को बदल दिया जाये तो भावना में बहुत बड़ा परिवर्तन घटित हो सकता है। भावना के द्वारा शारीरिक विद्युत् और रासायनिक द्रव्यों में भी परिवर्तन किया जा सकता है। यही कारण है कि वीतराग व्यक्ति के पास आने वाले सिंह और बकरी अपने वैरभाव को भूलकर एक घाट पर पानी पीने लग जाते हैं। वीतराग पुरुष का आभामंडल और उनके शरीर से प्रवाहित होने वाली विद्युत् इतनी अधिक निर्मल और सशक्त होती है कि उनके
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