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अवबोध-२३
जिस दान से बेरोजगारी, गरीबी, मुफ्तखोरी, भिखमंगी और पुरुषार्थहीनता को बढ़ावा मिले वैसे दान का सर्वत्र निषेध होना चाहिए।
निष्कर्ष के रूप में प्रस्तुत प्रकरण का सार यही है कि जहां लोकोत्तर की भावना का प्रश्न है वहां पात्रशुद्धि, दाताशुद्धि और देयशुद्धि-तीनों की आवश्यकता है। जहां सामाजिक सहयोग और सामाजिक कर्त्तव्यबोध है, वहां पात्रशुद्धि की विचारणा नहीं की जाती।
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