________________
२००
सिन्दूरप्रकर
नरेश फिलिप्स का बेटा था। धन की शक्ति के कारण ही वह वर्षों वर्षों तक सारी दुनिया में छाया रहा। धन के महत्त्व को बताते हुए पंचतन्त्र में कहा गया
'गतवयसामपि पुंसां, येषामर्थो भवन्ति ते तरुणाः । अर्थेन तु ये हीना, वृद्धास्ते यौवनेऽपि स्युः ।।'
जिन व्यक्तियों के पास धन है वे बुढ़ापे में भी तरुण बने रहते हैं । जो धनविहीन हैं वे युवावस्था में भी वृद्ध हो जाते हैं।
मनुष्य के सभी गुण तभी सार्थक बनते हैं जब उसके पास धन होता है। धन ही जीवन को चलाता है, दैनन्दिन आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। बिना धन के कुछ नहीं होता । अन्ततः उसे धन की ही शरण में जाना पड़ता है | महाकवि माघ ने धन के प्रयोजन को सिद्ध करते हुए कहा है'बुभुक्षितैर्व्याकरणं न भुज्यते, पिपासितैः काव्यरसो न पीयते । न विद्यया केनचिदुद्धृतं कुलं हिरण्यमेवार्जय निष्फलाः कलाः । । ' भूखे आदमी की भूख व्याकरण से नहीं मिटती, प्यासे आदमी की प्यास काव्यरस से तृप्त नहीं होती, विद्या के द्वारा किसी ने कुल का उद्धार नहीं किया, इसलिए तुम धन का उपार्जन करो । उसके बिना सभी कलाएं निष्फल हैं।
जीवन की अनिवार्यता के लिए तथा धनसिद्धि के लिए व्यक्ति को लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करनी होती है। यह एक सचाई है कि लक्ष्मी के पास धन देने का सामर्थ्य भी है तो वह अस्थिर भी है। जब मनुष्य के पास लक्ष्मी आती है तो वह उसके नशे में धुत हो जाता है। जब वह जाती है तब व्यक्ति विषादग्रस्त हो जाता है । आचारांग की टीका में कहा गया'विभवः इति किं मदस्ते, च्युतविभवः किं विषादमुपयासि ? करनिहितकन्दुकसमाः पातोत्पाता मनुष्याणाम्।।'
हे मनुष्यो ! तुम्हारे पास धन है, फिर अहंकार क्यों ? यदि तुम धनविहीन हो तो फिर विषाद क्यों? मनुष्यों का यह जीवन हाथ में आई हुई गेंद के समान पतन और उत्थान वाला है।
जिनके पास धन है वे अपने आप में मूढ होकर अन्धता का जीवन जीते हैं। उन्हें परपीड़ा का अनुभव ही नहीं होता । वे यह भी नहीं जानते कि अन्य लोग भी विपत्तिग्रस्त हैं। उनकी प्रायः चिन्ता अपने ऐश्वर्य, सुखसुविधा की होती है । वे दूसरों के कष्टों से अनजान बने रहते हैं । परदर्द को देखकर दो बून्द आंसू बहाने वाले लोग कम होते हैं, किन्तु अधिकतर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org