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अवबोध-२०
१८९ गुणिजनों की संगति दुर्गुण अथवा निर्गुण व्यक्ति के समूचे जीवन को बदल देती है। अंगुलिमाल डाकू भगवान् बुद्ध की संगत पाकर महान् ऋषि बन गए। अर्जुनमाली जैसे आततायी का जीवन भगवान महावीर की सन्निधि पाकर रूपान्तरित हो गया। गुणवान् व्यक्ति का जादुई पवित्र आभामंडल तथा उसकी वाणी में अद्भुत शक्ति होती है। उसकी सन्निधि से जीवन में अवश्य बदलाव आता है। गुणी व्यक्ति तथा निर्गुण व्यक्ति का जीवन कैसा होता है? इसे बृहत्कल्पभाष्य में एक गाथा के द्वारा समझाया गया है
'गुणसुट्ठियस्स वयणं घयपरिसित्तुब पावओ भाइ।
गुणहीणस्स न सोहइ नेहविहूणो जह पईवो।।' गुणवान् व्यक्ति का वचन घृतसिंचित अग्नि की भांति तेजस्वी और प्रकाशयुक्त होता है और गुणहीन का वचन तैलविहीन प्रदीप की भांति निस्तेज और प्रकाशशून्य होता है।
जो व्यक्ति तेजस्वी तथा प्रकाशयुक्त पुरुष के पास बैठता है अथवा निस्तेज और प्रकाशहीन पुरुष के पास बैठता है, उसकी संगति करता है, निश्चित ही उसके गुण अथवा अवगुण उस व्यक्ति में भी संक्रान्त हो जाते हैं। आचार्य भिक्षु ने इस विषय में कहा था- 'बांध्यो कालारी पाखती गोरियो, वर्ण नावें पिण लखण आवे रे।' दो बैल पास-पास बंधे हैं। एक काला है और दूसरा सफेद। काला बैल कुबुद्धियुक्त है। सफेद बैल में काले बैल का वर्ण तो संक्रांत नहीं होता, पर सदा साथ में रहने से उसकी कुबुद्धि तो संक्रांत हो ही जाती है। इसी प्रकार यदि बेर का वृक्ष कदली वन के पास उगता है तो बेर भले ही कदली न बने, किन्तु उसकी सुवास का प्रभाव तो बेर के पौधे पर हो ही जाता है। इसी उद्देश्य से नीतिकार कहते हैं- 'स्तोकोऽपि गुणिसंसर्गः श्रेयसे भूयसे भवेत्'-गुणिजनों का थोड़ासा संसर्ग भी महान कल्याण के लिए होता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ को गुम्फित करने वाले आचार्य सोमप्रभ ने भी प्रस्तुत 'गुणिसंग' प्रकरण में संगतिजन्य अभीष्ट फलों का बड़ी रोचकता से वर्णन किया है। वे कहते हैं-गुणोत्तम पुरुषों की संगति से मनुष्य की कुमति दूर होती है, मोह का भेदन होता है, विवेकशीलता बढ़ती है, न्याय का जन्म होता है, नम्रता का विस्तार होता है, यश फैलता है, धर्म का धारण तथा दुर्गति का निवारण होता है। पुनः सूरीश्वर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि यदि किसी को उपरोक्त गुणों की तथा अन्य गुणों की
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