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गुणिसंग प्रकरण
२०. अवबोध
सूर्य का मूल्य इसलिए है कि वह अपने आलोक से जग को आलोकित करता है। चन्द्रमा का मूल्य इसलिए है कि वह अपनी ज्योत्स्ना से शीतलता प्रदान करता है । तारों का मूल्य इसलिए है कि वे अपनी चमक से गगनमंडल को चमकाते हैं। आलोक, ज्योत्स्ना और दीप्ति- ये क्रमशः सूर्य, चन्द्रमा और तारों के गुण हैं। तभी सूर्य, चन्द्रमा और तारों की गुणवत्ता और मूल्यवत्ता है। जहां गुण होते हैं वहां पदार्थजगत् अथवा प्राणिजगत् का भी मूल्य बढ़ जाता है । गुणों के कारण ही उनमें प्रभुता का समावेश होता है और गुरुता आती है । इसी सत्य को संस्कृतकवि ने प्रकट करते हुए लिखा
'ज्येष्ठत्वं जन्मना नैव
गुणैर्ज्येष्ठत्वमुच्यते । गुणाद् गुरुत्वमायाति, दुग्धं दधि घृतं क्रमात् ।।'
गुरुता जन्म से ही नहीं होती, वह प्राप्त होती है गुणों से। जैसे कि गुणों के कारण दूध से दही, दही से घी क्रमशः गुरुता को पाता है, मूल्यवान् होता है।
यह सचाई है कि निर्गुण पदार्थ अथवा निर्गुण व्यक्ति की कोई मूल्यवत्ता नहीं होती। व्यक्ति का बड़प्पन उसके गुणों से प्रकट होता है न कि उच्चासन पर बैठने से । यदि कौआ सुमेरु के शिखर पर भी बैठ जाए तो भी वह गरुड़ नहीं बन सकता। संस्कृत-साहित्य में गुणों के महत्त्व को प्रकाशित करते हुए कहा गया- ' -' गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते, पितृवंशो निरर्थकःगुणों की सर्वत्र पूजा होती है, पिता के वंश की नहीं । गुणों के सामने पिता के वंश का मूल्य भी अर्थहीन हो जाता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी कहा गया- - 'गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वयः ' - गुणिजनों की पूजा अथवा सम्मान गुणों के कारण ही होता है, स्त्री-पुरुष के भेद अथवा आयु से नहीं होता। इसी के आधार पर संसार में एक कहावत भी है कि आते समय व्यक्ति का सम्मान अच्छी वेश-भूषा से होता है और जाते समय सम्मान गुणों का होता है। यदि व्यक्ति में गुण हैं तो वह दीपक के समान
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