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सौजन्य प्रकरण
१९.अवबोध
फूल में सौरभ और कांटें-दोनों होते हैं। सौरभ की सुवास सबको प्रिय लगती है, कांटों की चुभन हर किसी को अखरती है। उस सौरभ और चुभन से फूल स्वयं प्रभावित न भी हो, पर वे दोनों दूसरों को अवश्य प्रभावित करते हैं। ___ मनुष्य भी फूल की भांति सौरभ और कांटों से संवलित होकर जीवन जीता है। व्यक्ति की सुजनता सौरभ के समान एक गुण है और दर्जनता कांटे के समान एक अवगुण है। दोनों से अन्य व्यक्ति तो प्रभावित होते ही हैं, किन्तु स्वयं व्यक्ति भी उनसे प्रभावित होता है। महान् व्यक्ति वही होता है जिसमें सज्जनता का वास होता है। दूसरे व्यक्ति भी उसी के पास बैठना-उठना और रहना पसन्द करते हैं जो भलाई का जीवन जीते हैं। इस संदर्भ में प्रसंगरत्नावली का प्रसिद्ध श्लोक है
'गुणाः कुर्वन्ति दूतत्वं, दूतेऽपि वसतां सताम्।
केतकीगन्धमाघ्राय, स्वयं गच्छन्ति षट्पदाः।।' सज्जन व्यक्ति भले ही दूर रहे, किन्तु उनके गुण जीवन-निर्माण में दूत का कार्य करते हैं, जैसे केतकी की सुगन्ध से आकृष्ट होकर भ्रमर स्वयं उनके पास चले जाते हैं।
सज्जन व्यक्ति किसी को अपने पास नहीं बुलाते, फिर भी लोग उनसे मुग्ध होकर उनके पास चले जाते हैं। रत्न स्वयं किसी की तलाश नहीं करता और न ही वह कभी किसी से कहता है कि तुम मेरे पास आओ, किन्तु व्यक्ति स्वयं उसकी तलाश करता है, वह उसके पास जाता है। क्योंकि आकर्षण हमेशा गुणों का अथवा मूल्यवत्ता का होता है। जिसके पास गुण होते हैं, मूल्यवत्ता होती है उसके पास सभी जाना चाहते हैं, निर्गुण के पास कोई फटकना भी नहीं चाहता। इसलिए मूल्यांकन गुणिजनों का होता है। इस प्रसंग में नीतिकार दुर्जन-संगति से दूर रहने
का परामर्श देते हुए लोगों से कहते हैंJain Education International
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