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अवबोध- १५
कर्मशास्त्र में क्रोध की मात्रा के तारतम्य पर भी गहनता से विश्लेषण हुआ है । एक व्यक्ति मुक्का उठाता है और समझ लिया जाता है कि वह अभी क्रोध में है। क्रोध का प्रभाव स्नायुतंत्र और मांसपेशियों पर होता है। उनमें उत्तेजना आती है । उसी के अनुरूप व्यक्ति में सक्रियता दिखाई देती है। आवेग का प्रभाव स्नायुतंत्र, मांसपेशियां, रक्त, फेफड़ों, हृदय की गति, श्वास और ग्रन्थियों को भी प्रभावित करता है। आवेग एक प्रकार से भूकम्प के समान है। जिस प्रकार भूकम्प की तीव्रता और मन्दता को वैज्ञानिक भूकम्पमापकयन्त्र (Richter Scale) के द्वारा मापन करते हैं उसी प्रकार तात्कालिक आवेग की मन्दता और प्रबलता का मापन भी वैज्ञानिक यन्त्रों के द्वारा संभव हो सकता है । किन्तु उसकी कालावधि का निर्णय उन यन्त्रों के द्वारा सुलभ नहीं है । कर्मशास्त्र में उस कालावधि की तरतमता को चार भागों में बांटा गया है
• एक क्रोध वह है जो चट्टान की दरार की भांति अमिट होता है। वह दरार सैंकड़ों-हजारों वर्षपर्यन्त रह जाती है। वह क्रोध की तीव्रतम अवस्था है। उस अवस्था को कर्मशास्त्रीय भाषा में 'अनन्तानुबन्धी क्रोध' कहा जाता है।
• एक क्रोध वह है जो भूमि की रेखा के समान है। वह रेखा कठिनाई से मिटती है। वह क्रोध की तीव्रतर अवस्था है। उसे 'अप्रत्याख्यान क्रोध' कहा जाता है।
• क्रोध की तीसरी अवस्था बालू की रेखा के समान है। वह हवा के झोंके के साथ मिट जाती है। वह क्रोध की मन्द अवस्था है। उसे 'प्रत्याख्यान क्रोध' से जाना जाता है।
• क्रोध की चौथी अवस्था पानी की रेखा के समान है। पानी में खींची हुई रेखा तत्काल मिट जाती है। वह क्रोध की मन्दतर अवस्था है। उसे कर्मशास्त्र में 'संज्वलन क्रोध' कहा जाता है। क्रोध की तीव्रतम आदि चार अवस्थाओं के आधार पर मनुष्य के भी चार प्रकार -नीच, अधम, मध्यम और उत्तम हो जाते हैं। नीतिकारों ने इस सन्दर्भ में लिखा है
'उत्तमस्य क्षणं कोपं, मध्यमस्य प्रहरद्वयम् ।
अधमस्य त्वहोरात्रं, नीचस्य मरणधुवम् ।।'
उत्तम पुरुष का क्रोध क्षणभर के लिए होता है, मध्यम पुरुष का क्रोध अधिकतम दो प्रहर तक ठहरता है, अधम पुरुष के क्रोध की अवधि
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