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________________ १५४ अग्नि के ही जल जाएगा। क्रोध उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते हैं। उनमें निमित्तों की भी सहभागिता रहती है और परिस्थितियों की भी । उन्हें कभी रोका नहीं जा सकता। वे प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न होती हैं, किन्तु उपादान कारण सबका एक ही होता है। वह है - मोह | मोह की धारा प्रतिपल राग-द्वेष को उत्पन्न कर रही है। राग-द्वेष के द्वारा निरन्तर एक चक्र घूम रहा है। वह चक्र आवेग और उप - आवेग का है | राग-द्वेष ही क्रोध - मान-माया और लोभ को संचालित कर रहे हैं और संचालित कर रहे हैं हास्य-रति-भय- शोक और जुगुप्सा आदि उप-आवेगों को। उपादान के साथ निमित्त कारणों को गौण नहीं किया जा सकता। वे भी उसके साथ जुड़े हुए हैं। दोनों का सांझा व्यापार ही क्रोध - संतति को आगे से आगे बढा रहा है। सिन्दूरकर स्थानांगसूत्र में क्रोध के चार प्रकार बतलाएं हैं आत्मप्रतिष्ठित क्रोध- अपने ही निमित्त से उत्पन्न होने वाला क्रोध । परप्रतिष्ठित क्रोध - दूसरों के निमित्त से उत्पन्न होने वाला क्रोध । तदुभयप्रतिष्ठित क्रोध - स्व-पर- दोनों के निमित्त से उत्पन्न होने वाला क्रोध । • • • अप्रतिष्ठित क्रोध- क्रोध- वेदनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाला क्रोध। उसका कोई निमित्त अथवा कारण नहीं होता, फिर भी क्रोध-वेदनीय कर्म के परमाणु एक साथ इतनी प्रबलता से उदय में आते हैं कि व्यक्ति बैठे-बैठे ही क्रोध में भर जाता है। इस प्रकार व्यक्ति निमित्तों के मिलने पर भी क्रोधित होता है और उनके बिना भी क्रोधित होता है। थोड़ा-सा मन के प्रतिकूल हुआ अथवा किसी ने कुछ कहा, व्यक्ति क्रोध से तमतमा उठता है । किसी ने कहा हुआ काम नहीं किया तो भी व्यक्ति क्रोध में उबल पड़ता है। कभी पित्त की प्रबलता, कभी अस्वास्थ्य की समस्या भी व्यक्ति को क्रोधी और चिड़चिड़ा बना देती है । देश, काल और वातावरण का प्रभाव भी व्यक्ति को प्रभावित करता है। ये सब क्रोध - उत्पत्ति के निमित्तजन्य कारण हैं। शरीरशास्त्री क्रोध - उत्पत्ति के लिए ग्रन्थियों के स्राव को उत्तरदायी मानते हैं। जब एड्रेनल (Adrenal) ग्रन्थि का स्राव समुचित नहीं होता तो भय, चिन्ता और क्रोध की उत्पत्ति होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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