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सिन्दूरप्रकर है। कोई वीर व्यक्ति ही उसकी अनुपालना कर सकता है, इसलिए नीतिकार कहते हैं
'शूरान्महाशूरतमोऽस्ति को वा ?
मनोजबाणैर्व्यथितो न यस्तु।।' प्रश्न हआ कि वीरों में सबसे बड़ा वीर कौन? इसके उत्तर में कहा गया कि जो कामबाणों से व्यथित न हो। जैसे हाथी का भार हाथी ही उठा सकता है वैसे ही घोर ब्रह्मचर्य का पालन भी कोई शूरवीर ही कर सकता है। स्थूलभद्र जैसे महामुनि कोशा वेश्या के घर चातुर्मासिक प्रवास के लिए रहे, षडरसयुक्त भोजन का ग्रहण किया, प्रतिदिन वेश्या के हावभाव चेष्टाओं का नेत्रपान किया तथा कामोद्दीपक गीत-संगीत का श्रवण किया, फिर भी वे काजल की कोठरी से बेदाग होकर निकल गए, विचलन की पगडंडियों में जाने पर भी अविचल रहे और अग्नि की महाज्वाला में तप कर कुन्दन की भांति निखर गए।
वे अजेय और महान योद्धा स्थूलभद्र ही हो सकते हैं। इसलिए भगवान महावीर ने कहा-'इथिओ जे ण सेवंति, आदिमोक्खा ह ते जणा।' जो व्यक्ति कामवासना से मुक्त होते हैं वे मोक्ष पाने वालों की पहली पंक्ति में है।
इस दुनिया में विचलित करने वालों की भी कमी नहीं है और विचलन करने वाले साधनों का भी अभाव नहीं है। जब तक जीवन है तब तक निमित्त मिलते ही रहेंगे। फिर भी एक ब्रह्मचारी को सदैव जागरूकता का जीवन जीना आवश्यक है। जैसे मुर्गी के बच्चे को सदा बिलाव का डर लगा रहता है वैसे ही ब्रह्मचारी को स्त्री के शरीर से डरते रहना चाहिए। ___ संयमी मुनि अपने ब्रह्मचर्य की रक्षा शील की नवबाड़ों से करे। एक गृहस्थ श्रावक स्वदार-सन्तोष में रहकर परस्त्रीगमन और वेश्यागमन का वर्जन करे तथा अप्राकृतिक मैथुन से बचे।
फलश्रुति के रूप में ब्रह्मचर्यव्रत का फलित है• मनोबल, धृतिबल का विकास। • आत्मविश्वास का उन्नयन। • स्नायविक शक्ति का पोषण। • मस्तिष्क शक्ति का जागरण। . ऊर्ध्वरेता की ओर अभिगमन। • आध्यात्मिक शक्तियों का विकास। For Private & Personal Use Only
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