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________________ अवबोध-१३ १४३ है। कहना चाहिए कि आज की हिंसा का एक मुख्य कारण कामप्रवृत्ति भी है। पश्चिम के कुछ काममनोविज्ञानी डॉक्टर (Sex Psychologist) अतिकाम प्रवृत्ति को मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति मानते थे। उन्होंने अपनी इस मान्यता का परीक्षण के रूप में लोगों पर प्रयोग भी किया, पर उसका परिणाम सकारात्मक नहीं आया। तब उन डॉक्टरों को भी अपनी विचारधारा में परिवर्तन करना पड़ा। 'साइकॉलाजी एण्ड मॉरल्स' नामक पुस्तक में मनोविज्ञानवेत्ता प्रो. हेडफील्ड ने लिखा है- 'स्वच्छन्द यौनाचरण का परामर्श देना व्यक्ति को विनाश के मार्ग की ओर धकेलने की विधि है।' ___ इसलिए नीतिकार कहते हैं कि कामान्ध मनुष्य की कोई चिकित्सा नहीं है। कामान्ध व्यक्ति कामभोगों के प्राप्त न होने पर 'से सोयइ, जूरति तिप्पति पिड्डति परितपति' शोक करता है, खिन्न होता है, कुपित होता है, आंसू बहाता है, पीड़ा और परिताप का अनुभव करता है। काव्यरचयिता आचार्य सोमप्रभ ने भी प्रस्तुत प्रकरण में ब्रह्मचर्य के प्रभावों का प्रभावी ढंग से वर्णन किया है। वे लिखते हैं-शील के प्रभाव से अग्नि जल की भांति शीतल हो जाती है, सर्प पुषमाला के समान तथा सिंह हरिणसम बन जाता है। दुष्ट हाथी घोड़े के समान आचरण करता है और पर्वत पाषाणखंड के समान प्रतीत होता है। विष अमृततुल्य और विघ्न उत्सव जैसा लगता है। शत्रु प्रियजन, समुद्र क्रीडासरोवर और अटवी स्वगृह के समान दिखाई देते हैं। शील के आचरण से प्राकृतिक विपदाएं तथा पशुजन्य उपद्रव शान्त होते हैं, देवता शीलधारी मनुष्यों की सहायता करते हैं। उनके श्रेयस् और कीर्ति का विस्तार और धर्म का उपचय होता है। ___ सूरीश्वर ने प्रस्तुत संदर्भ में शीलभंग के दुष्परिणामों की भी चर्चा की है-शीलभंग करने वाला व्यक्ति सर्वप्रथम अपने कुल की निर्मलता पर कालिख पोतता है, अपने चारित्र को तिलांजलि देता है, जगत् में अपने अपयश के पटह को बजाता है, बिना निमन्त्रण के आपदाओं को आमन्त्रण देता है, गुणरूप उपवन को दवाग्नि लगाता है और स्वयं के लिए मुक्ति का द्वार बन्द करता है। निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि शील का पालन करना एक दुष्कर कार्य है। वह किसी अजेय व्यक्ति के द्वारा ही शक्य हो सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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