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सिन्दूरप्रकर इन्द्रियां-स्पर्श, रस और घ्राण भोगी इन्द्रियां हैं।
भगवतीसूत्र (शतक ७ सूत्र १३१, १३६) में काम और भोग के अन्तर को स्पष्ट करते हुए कहा गया है-'कतिविहा णं भंते! कामा पण्णत्ता?' भन्ते! काम कितने प्रकार के कहे गए हैं?
'गोयमा! दुविहा कामा पण्णत्ता, तं जहा-सदा य रूवा य इति।' गौतम! काम दो प्रकार के हैं-शब्द और रूप।।
'कतिविहा णं भंते! भोगा पण्णता?' भन्ते! भोग कितने प्रकार के कहे हैं? 'गोयमा! तिविहा भोगा पण्णत्ता, तं जहा-गंधा, रसा, फासा।' गौतम भोग तीन प्रकार के बताए हैं-गन्ध, रस और स्पर्श। समुच्चय में कामभोग पांचों ही हो सकते हैं।
रूप का जादू मनुष्य को सबसे अधिक कामभोगों में फंसाने वाला होता है। रूप के वशीभूत होकर व्यक्ति क्या कुछ नहीं करता? अनेक शृंगारप्रधान काव्यों में कामनियों के नेत्रों को बाणों की संज्ञा दी गई है। नेत्रों के बाण कितने तीक्ष्ण होते हैं? उन बाणों से आहत होकर बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि अपने साधनापथ से च्युत हो जाते हैं। इस सन्दर्भ में संत रहिमन ने ठीक ही कहा
__ 'रहिमन तीर की चोट से, चोट खाय बचि जाय।
नैन बाण की चोट से, धन्वन्तरि न बचाय।।' ___ मनुष्य दूसरी-दूसरी चोटों से अपने आपको बचा लेता है। किन्तु स्त्री के नेत्र-बाणों की चोट ऐसी घातक होती है, उससे आहत व्यक्ति धन्वन्तरि के बचाने से भी नहीं बच सकता। ___ यह रूप की मादकता मनुष्य को मूढ बनाती है, अपनी ओर आकर्षित करती है, यह एक वास्तविक सचाई है। पर उसका आकर्षण क्यों होता है? इसका उत्तर विज्ञान में निहित है। वैज्ञानिक मानते हैं कि नारी के शरीर से एक प्रकार की गन्ध निकलती रहती है। इसे 'फेरोमोन' कहते हैं। इस सुगन्ध के कण हवा में तैरते रहते हैं। उसके कारण पुरुष अज्ञात रूप से उसकी ओर आकृष्ट होता रहता है। उसमें एक प्रकार से काम का आकर्षण होता है। वह आकर्षण प्राणिजगत् में मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी तथा छोटे जीवजन्तुओं-मधुमक्खी, चींटी व रेशम के कीड़ों तक में पाया जाता है। उस पदार्थ को बाबीकॉल भी कहते हैं। इसलिए जैन आगमों में मुनि के लिए सुगन्धित पदार्थों के सेवन का सर्वथा परिवर्जन किया गया है, क्योंकि गन्ध भी मन को कामाकुल बनाती है।
शब्दों का संसार भी बड़ा विचित्र होता है। उसका अपना अलग जादू
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